Saturday, July 27, 2024
30.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiवनाग्नि रोकना है, तो कम करनी होगी मानवीय गतिविधियां

वनाग्नि रोकना है, तो कम करनी होगी मानवीय गतिविधियां

Google News
Google News

- Advertisement -

इन दिनों उत्तराखंड के जंगल धधक रहे हैं। इस साल लगी आग में उत्तराखंड में पांच लोगों की मौत हो गई है और चार लोग बुरी तरह घायल हो गए हैं। पर्वतीय इलाकों मे वनाग्नि की घटनाएं कोई नई नहीं हैं। सदियों से वनाग्नि की घटनाएं होती रही हैं। पिछले ही साल अगस्त में अमेरिका के हवाई के जंगलों में लगी आग में लगभग सौ आदमियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस आग को बुझाने में अमेरिकी प्रशासन को पसीना आ गया था। कहा जाता है कि हवाई के जंगलों में लगी आग पिछले सौ में सबसे भयानक थी। उत्तराखंड में छह मई 2024 तक वनाग्नि की कुल 930 घटनाएं हो चुकी हैं। इसमें लगभग 12 सौ हेक्टेयर वन भूमि प्रभावित हुई है। इससे पैदा हुए धुएं के चलते पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी, बागेश्वर सहित कई जिलों की विजिबिल्टी (दृश्यता) कम हुई है। सवाल यह है कि वनों में लगने वाली आग की घटनाओं को कैसे कम किया जा सकता है। इसका सबसे सीधा सा जवाब है कि वन चाहे पर्वतीय इलाकों के हों या मैदानी, इन वन क्षेत्रों में जितना कम मानवीय हस्तक्षेप होगा, वनाग्नि की घटनाएं उतनी ही कम होंगी।

इस बात का प्रमाण यह है कि कोरोना काल में उत्तराखंड ही नही, अन्य पर्वतीय इलाकों में वनाग्नि की घटनाएं सबसे कम हुई थीं। कारण यह है कि उन दिनों मानवीय गतिविधियां सबसे कम रहीं, लोग घरों से नहीं निकले, तो वन क्षेत्रों में आग लगने की घटनाएं कम हुईं। वनों में आग लगने का कारण लोगों की लापरवाही है। लकड़ी, पत्ते, फल या फूल इकट्ठा करने गए लोग बीड़ी, सिगरेट को जलता हुआ फेंक देते हैं, इससे वहां पड़ी सूखी घास-फूस में आग लग जाती है। वनों के आसपास रहने वाले घरों से उड़ी एक छोटी सी चिंगारी वन क्षेत्रों में कहर ढा देती है। कुछ लोग शरारतन आग लगा देते हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर चमोली के गैरसैंण इलाके का एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें पीछे धधकते जंगल के आगे खड़े होकर दो युवक दावा कर रहे थे कि उन्होंने यह आग लगाई है।

यह भी पढ़ें : किसान संगठन कैसे तय कर सकते हैं, किसको वोट देना है

उनका काम आग से खेलना है। आग से खेलने वाले लोग हमारे पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे हैं। इन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। वनाग्नि पर जल्दी काबू न पाने के पीछे कारण यह भी है कि हमने अपने पुरखों की तकनीक को अपनाना कम कर दिया है। हमने आधुनिक होने का दंभ पाल लिया है। हमारे पुरखे वन भूमि में एक निश्चित दूरी पर गोलाकार एक चौड़ी खाई खोदकर रखते थे। आते जाते या एक निश्चित समयांतराल पर वे उस खाई की साफ-सफाई भी करते रहते थे। ऐसी खाइयां पूरे वन क्षेत्र में होती थीं। जब किसी की असावधानी या दो सूखे पेड़ों की आपसी रगड़ अथवा किसी के जानबूझकर आग लगाने पर आग लगने वाले क्षेत्र के इर्द-गिर्द की खाइयों की खरपतवार सब लोग मिलकर हटा देते थे। इससे आग ज्यादा फैलने नहीं पाती थी। आग एक सीमित दायरे में ही रह जाती थी। आज यह तकनीक कम ही आजमाई जाती है। नतीजा यह होता है कि जब वन क्षेत्र में आग लगती है, तो जंगल का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होता है।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

Ajay Chautala: अजय चौटाला की कार दुर्घटनाग्रस्त, बाल-बाल बचे

जननायक जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला(Ajay Chautala: ) शुक्रवार को बाल-बाल बचे। दरअसल, जींद जिले के नरवाना क्षेत्र में अचानक सड़क...

“आयुष्मान आरोग्य मन्दिर गहलब में बुजुर्ग रोगियों के लिए स्वास्थ्य कैम्प का आयोजन किया गया”

पलवल : आयुष्मान आरोग्य मन्दिर गहलब में आज वरिष्ठ नागरिकों को स्वस्थ जीवन बिताने ओर निरोगी रहने के लिए निःशुल्क जांच शिविर का आयोजन...

Haryana BJP: मोहनलाल बड़ौली ने कहा, हरियाणा में तीसरी बार भी बनेगी डबल इंजन की सरकार

भारतरीय जनता पार्टी (BJP) की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष एवं राई से विधायक मोहनलाल बड़ौली ने दावा(Haryana BJP: ) किया कि प्रदेश में तीसरी बार...

Recent Comments