उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में इन दिनों भारी बारिश हो रही है। बरसात के चलते जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रा और उत्तराखंड में चारों धाम यात्रा रोक दी गई है। जिस दिन बरसात कम होती है, कहीं पर भूस्खलन नहीं होती है, उस दिन उत्तराखंड में चारों धाम यात्रा जारी रहती है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बारिश के चलते कई गांवों का एक दूसरे से संपर्क कट गया है, सड़कें बारिश के पानी के तीव्र बहाव में लापता हो गई हैं। इन दिनों जब हिमाचल और उत्तराखंड में भारी बारिश हो रही है, तो हरियाणा के शहरों में यमुना के किनारे बसे गांवों के लोग की धड़कनें तेज हो गई हैं। उन्हें पिछले साल आई बाढ़ के दौरान झेली गई त्रासदी याद आ रही है। एक दिन पहले ही हथिनी कुंड बैराज से छह हजार दो सौ क्यूसेक पानी यमुना नहर में छोड़ने पर इसके डूब क्षेत्र के लोग सतर्क हो गए हैं।
हिमाचल में हुई भारी बारिश के चलते हथिनी कुंड बैराज के पांचों गेट खोलने पड़े हैं। असल में जब भी हिमालयी राज्यों में भारी बरसात होती है, तो उसका पानी एकाएक हरियाणा की नदियों में आता है जिसकी वजह से यहां बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। पिछले साल जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा में लगातार तीन दिन बरसात होने की वजह से प्रदेश के सात जिलों के 554 गांव बाढ़ की चपेट में आ गए थे। साल 2023 में यमुना, घग्गर और मारकंडा नदियां खतरे के निशान के ऊपर बह रही थीं जिसका नतीजा यह हुआ कि पंचकूला, अंबाला, यमुनानगर, करनाल, पानीपत, कैथल और कुरुक्षेत्र जिलों के गांवों में भर गया।
इन गांवों में रहने वाले लोगों को भागकर दूसरी ऊंची जगहों पर शरण लेनी पड़ी थी। बाढ़ के चलते कई गांवों में मकान, दुकान आदि गिर गए जिसमें दबकर काफी लोगों की मौत हो गई थी। लोगों को खाने और पीने की समस्या से जूझना पड़ा था क्योंकि उनका सारा अनाज पानी में भीग गया था या बाढ़ के पानी में बह गया था। दाने-दाने को मोहताज लोगों को सरकार ने राशन मुहैया कराया, लेकिन जो लोग काफी दूरदराज इलाकों में फंसे हुए थे, उन तक तो सरकारी सहायता भी नहीं पहुंच पाई थी। बाढ़ के चलते पिछले साल तीन लाख एकड़ फसल बरबाद हो गई थी।
करीब 76 गांवों का संपर्क जिला मुख्यालय से कट गया था। हालांकि, यह भी सही है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने ध्वस्त हो गए मकानों और बरबाद हो गई फसलों का मुआवजा देने की घोषणा की थी। लेकिन जब तक उनके पास मुआवजा या राहत पहुंची, तब तक लोग काफी परेशानियां झेल चुके थे। बाढ़ का पानी घटने पर फैली बीमारियों ने तो उनकी कमर ही तोड़ दी थी। इस बार शासन-प्रशासन को पहले से ही सचेत होना होगा, ताकि पिछले साल जैसी त्रासदी न भोगनी पड़े।
-संजय मग्गू