हरियाणा में लोकसभा की दस सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवारों की तस्वीर अब साफ हो गई है। भाजपा, कांग्रेस, जजपा और इनेलो ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। स्टार प्रचारकों ने चुनावी रैलियां भी करनी शुरू कर दी है। जैसे-जैसे मौसमी तापमान बढ़ता जा रहा है, चुनावी सरगर्मी भी तेज होती जा रही है। इन दिनों चुनावी रैलियों में प्रदेश पर चढ़े कर्ज को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे पर हमलावर है। नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो लगभग सभी रैलियों में किसी न किसी बहाने प्रदेश पर लगातार बढ़ते कर्ज का मुद्दा उठाकर भाजपा और जजपा को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि वर्ष 2014 में प्रदेश पर केवल सत्तर हजार करोड़ रुपये का कर्ज था। आज प्रदेश पर लगभग 4.51 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। इसके बाद वे अन्य कर्जों को भी गिनाना नहीं भूलते हैं।
उनका कहना है कि इसके अलावा आंतरिक कर्ज भी लगभग 3.17 लाख करोड़ रुपये है। प्रदेश पर जीएसडीपी का 41.2 प्रतिशत कर्ज हो गया है। यह 33 प्रतिशत की मानक सीमा से कहीं ज्यादा है। नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वह आंकड़ों को गलत तरीके से पेश करके जनता को गुमराह कर रही है। भाजपा नेता और प्रदेश सरकार के मंत्री इस बात को सिरे से खारिज करते हैं। उनका कहना है कि पिछले साल प्रदेश पर 2.84 लाख करोड़ रुपये ही कर्ज था। इस साल वह 3.17 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। इन पैसे से प्रदेश का विकास भी तो काफी किया गया है। प्रदेश की सड़कों की मरम्मत, नई सड़कों का निर्माण, प्रत्येक जिले में खुलने जा रहे मेडिकल कॉलेज, हाईवे निर्माण आदि को गिनाने से भाजपा नेता नहीं चूकते हैं।
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उनका दावा है कि पिछले साढ़े नौ साल में प्रदेश का जितना भी विकास हुआ है, उतना पिछले कई दशकों में नहीं हुआ था। प्रदेशवासियों को पेयजल सुविधा, चिकित्सा सुविधा और स्कूल-कालेजों की दशा सुधारने में जिस तरह प्रदेश सरकार ने रुचि ली और जनता के हित में कार्य किए, उतना कोई सरकार नहीं कर सकी थी।
बुजुर्ग, विधवा, अविवाहित और अन्य कई तरह की पेंशन योजनाएं शुरू करके भाजपा सरकार ने लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने का काम किया है। आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि हरियाणा पर जितना कर्ज है, उसको देखते हुए स्थिति को गंभीर कहा जा सकता है। साढ़े नौ साल में चार गुना कर्ज लेना वाकई चिंताजनक बात है। जब प्रदेश पर कर्ज का बोझ बढ़ता जाता है, तो प्रति व्यक्ति कर्ज भी बढ़ता जाता है। अभी से यदि आय बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो एक दिन ऐसी भी स्थिति आ सकती है, जब कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी कर्ज लेना पड़ सकता है। यह स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है।
-संजय मग्गू
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