मनुष्य जब मान-अपमान की परिधि से ऊपर उठ जाता है, तभी वह महान हो सकता है। महान होने के लिए कुछ और भी गुण होने चाहिए, लेकिन मान-अपमान को समभाव से लेने का गुण आवश्यक है। जो व्यक्ति अपने काम में सुख का अनुभव करता है, लोक कल्याण के बारे में सोचता हो, वह व्यक्ति सचमुच महान होता है। सत्य, अहिंसा, प्रेम और प्रत्येक प्राणी पर दया करने वाला निश्चित रूप से महान होता है। एक संत थे। वह बहुत सादगी से रहना पसंद करते थे। वह एक गुरुकुल भी चलाते थे। काफी दूर-दूर से युवा उनके पास अध्ययन के लिए आते रहते थे।
वह भी अपने शिष्यों पर अपार प्रेम बरसाते हुए समभाव से शिक्षा दिया करते थे। उनके एक शिष्य था। उसका नाम था रमाकांत। रमाकांत कुशाग्र बुद्धि का था और अपने साथी सहपाठियों के साथ बड़े प्रेम से रहता था। संत भी उसके इन गुणों से परिचित थे, लेकिन वह कभी उजागर नहीं करते थे। एक दिन की बात है। रमाकांत ने संत से कहा, गुरुजी, महान बनने के लिए व्यक्ति में कौन सा गुण होना चाहिए। उसका सवाल सुनकर संत मुस्कुराए। उन्होंने रमाकांत से कहा कि वह एक पुतला लेकर आए। संत के कहने पर रमाकांत जाकर एक पुतला ले आया।
संत ने उससे कहा कि तुम इस पुतले की प्रशंसा करो। संत का आदेश पाकर रमाकांत पुतले की खूब प्रशंसा करने लगा। काफी देर बाद संत ने रमाकांत को रोकते हुए कहा कि तुम अब पुतले की निंदा करो। रमाकांत ने काफी देर तक पुतले की निंदा की। संत ने कुछ देर बाद पूछा कि दोनों हालत में पुतले की क्या प्रतिक्रिाय थी। रमाकांत ने कहा कि कोई प्रतिक्रिया नहीं थी। तब संत ने कहा कि महान व्यक्ति को पुतलने की तरह होना चाहिए। मान हो या अपमान, उसे हर हालत में एक समान होना चाहिए।
-अशोक मिश्र
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