राहुल गांधी असमंजस में हैं। इसे छोडूं या उसे। किसे अपनाऊं और किसे पराया कर दूं। रायबरेली और वायनाड में जाकर मतदाताओं और कार्यकर्ताओं से पूछ चुके हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम कांग्रेस पार्टी के लिए थोड़े संतोषजनक हैं पिछले दो चुनाव परिणामों की अपेक्षा। सचमुच, राहुल गांधी की जगह कोई दूसरा भी होता, तो इसी ऊहापोह में होता। लोकसभा की रायबरेली सीट उनकी विरासती सीट है। राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी देश में होने वाले पहले लोकसभा चुनाव में यहां जीतकर सांसद बने थे। तब से ज्यादातर समय यह सीट कांग्रेस के पास ही रही। फिरोज गांधी के बाद इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी रायबरेली से सांसद बनते रहे हैं।
जब गांधी परिवार ने यहां चुनाव नहीं लड़ा, तो इंदिरा गांधी के रिश्ते के चचेरे भाई अरुण नेहरू, सतीश शर्मा जैसे लोग कांग्रेस की ओर से रायबरेली के प्रतिनिधि हुआ करते थे। इसलिए स्वाभाविक है कि राहुल गांधी का रायबरेली के प्रति मोह ज्यादा हो सकता है। होना भी चाहिए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठन और विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करनी है, तो उन्हें रायबरेली सीट बरकरार रखनी चाहिए। इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की स्वीकार्यता बढ़ी है। इसको बरकरार रखना है, तो राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहना होगा। फिर वायनाड सीट का क्या होगा? सवाल यह है कि राहुल गांधी पिछले लोकसभा चुनाव में वायनाड की चुनाव लड़ने क्यों गए? दरअसल, रायबरेली की तरह वायनाड सीट भी कांग्रेस की है।
केरल में अगर कांग्रेस सबसे ज्यादा मजबूत किसी लोकसभा सीट पर है, तो वह है वायनाड। पिछले लोकसभा चुनाव में वायनाड सीट से चुनाव लड़ने के लिए केरल के दो धुरंधर नेता जोर आजमाइश कर रहे थे। केरल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्नीथ्ला और ओमान चांडी दोनों इसी सीट पर चुनाव लड़ना चाहते थे। कांग्रेस किसी को भी नाराज करना नहीं चाहती थी। इसलिए अंतरकलह को समाप्त करने के लिए राहुल गांधी को वायनाड से भी लड़ाया गया।
जब राहुल ने वायनाड में लोगों से पूछा तो लोगों का कहना था कि यदि आप छोड़ वायनाड छोड़ देते हैं, तो प्रियंका को यहां से लड़ाओ। खैर, यह फैसला तो राहुल गांधी को करना है, लेकिन एक सीट इस तरह छोड़ी जाए कि वहां के मतदाता नाराज न हों। राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के पद को लेकर भी ऊहापोह में हैं। वैसे नेता प्रतिपक्ष एक महत्वपूर्ण पद होता है। वह शैडो प्रधानमंत्री होता है और पूरे विपक्ष का प्रतिनिधित्व करता है। कई तरह की नियुक्तियों में वह पीएम के साथ होता है। यदि वह नेता प्रतिपक्ष बनते हैं, तो वह संसद में पूरे विपक्ष का पुरजोर साथ देकर अपने साथियों का हौसला आफजाई कर सकते हैं। जब यह प्रस्ताव उनके सामने रखा गया था, तो मल्लिकार्जुन खड़गे ने मजाकिया लहजे में कहा था कि यदि बात नहीं मानी, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई करूंगा। जल्दी ही इस मसले पर भी फैसला लेना होगा।
-संजय मग्गू
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