रामकृष्ण परमहंस ने भारत के महान संत, दार्शनिक और विचारक थे। उनका मानना था कि सभी धर्म सच्चे हैं और वे ईश्वर को प्राप्त करने के अलग-अलग मार्ग हैं। उनका मानना था कि यदि आदमी निष्पाप होकर आराधना करे, तो उसे ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं। उन्होंने हमेशा जाति-पांति, छुआछूत का विरोध किया। उनका दर्शन मानवतावादी था। एक बार की बात है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस और तोतापुरी नाम के एक संत बैठे बातचीत कर रहे थे। उन दिनों ठंड पड़ रही थी। शाम का समय नजदीक था तो ठंड से बचने के लिए तोतापुरी ने धूनी जलाई और दोनों उस धूनी की आंच से तापते हुए अपनी बातचीत में लग गए। उस समय थोड़ी दूर पर माली काम कर रहा था।
उसे भी ठंड लग रही थी। उसने थोड़ी दूर पर कुछ लकड़ियां और घासफूस इकट्ठी की। उसको जलाने के लिए वह धूनी के पास गया और जलती हुई एक लकड़ी खींच ली। माली को ऐसा करते देख, तोतापुरी को गुस्सा आ गया। उन्होंने उसे भला बुरा कहते हुए एक थप्पड़ जड़ दिया। यह देखकर रामकृष्ण परमहंस हंसने लगे। इस पर बिगड़ते हुए तोतापुरी ने कहा कि आप हंस रहे हैं। इस आदमी ने पवित्र धूनी को अपवित्र कर दिया।
इसकी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि यह मेरे द्वारा जलाई गई पवित्र धूनी में से लकड़ी खींच ले जाए। परमहंस ने तोतापुरी से कहा कि अभी आप थोड़ी देर पहले तो दर्शन बता रहे थे कि प्रकृति के प्रत्येक कण में एक ही अलौकिक प्रकाश पुंज है। तो फिर इस माली के लकड़ी छू लेने से धूनी कैसे अपवित्र हो गई, यह मेरी समझ में नहीं आया। यह सुनते ही तोतापुरी सन्न रह गए। उनकी समझ में आ गया कि उनसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है। उन्होंने माली से तत्काल क्षमा मांगी और भविष्य में ऐसा आचरण न करने का वचन दिया।
-अशोक मिश्र