हरियाणा के छह जिला अस्पतालों में दवाइयों की कमी हो गई है। यह कोई पहला मौका नहीं है जब प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की कमी हुई है। खबर है कि कई जिलों में बहुत सस्ते में मिलने वाली दवाइयां तक नहीं हैं। कहीं खांसी की दवाई नहीं है, तो कहीं कैल्शियम की गोलियां नदारद हैं। नतीजतन मरीजों को मजबूर होकर अस्पताल के बाहर खुले मेडिकल स्टोर्स से दवाइयों को खरीदना पड़ रहा है। ये दवाइयां मरीजों को काफी महंगी पड़ती हैं। कुछ सरकारी अस्पतालों में स्थानीय स्तर पर खरीदी गई दवाओं का भुगतान नहीं हुआ है। जिला मुख्यालयों में इन दवाओं का पैसा रिलीज नहीं हुआ है। इन स्थितियों से प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में बड़ी उम्मीद से अपना इलाज करवाने आने वाले मरीजों को निराश होना पड़ रहा है।
प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री मुफ्त इलाज योजना के तहत सरकारी अस्पतालों में मरीजों को दवाएं भी मुफ्त उपलब्ध कराती है। लेकिन नई दवाओं की खरीद न होने या दवाओं का दवा कंपनियों को भुगतान न होने की वजह से रोहतक, महेंद्रगढ़, पानीपत, कैथल, जींद और झज्जर आदि जिलों में दवाओं की कमी हो गई है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में दवाओं के साथ-साथ चिकित्सा उपकरणों और चिकित्सा कर्मियों की भी भारी कमी है। प्रदेश का शायद ही कोई सरकारी अस्पताल हो, जहां विशेषज्ञ चिकित्सकों की संख्या जरूरत के मुताबिक हो। आबादी के हिसाब से देखें, तो प्रदेश के लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में नर्स, फार्मासिस्ट और पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी है।
इन कर्मचारियों पर काम का इतना दबाव है कि वे कई बार चिढ़चिढ़े हो जाते हैं, मरीज या उनके तीमारदार से ही झगड़ पड़ते हैं। सरकारी अस्पताल के जितने भी विभाग हैं, लगभग सबमें चिकित्सकों की कमी है। सबसे ज्यादा कमी तो प्रदेश में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की है। प्रदेश में केवल 11.86 प्रतिशत डॉक्टर (2119 एमबीबीएस डॉक्टर्स में से 244) ही जिला सिविल अस्पतालों में क्रिटिकल सेवाओ जैसे आईसीयू लेबर, एसएनसीयू में सेवारत हैं। इतने बड़े प्रदेश में कुल 296 विशेषज्ञ डाक्टर हैं।
सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी का सबसे बड़ा कारण एमबीबीएस पढ़ने वाले छात्रों की बहुत ज्यादा फीस है। एक छात्र या छात्रा को प्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई करने के लिए पचास से सत्तर अस्सी लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इतनी फीस अदा करने की हैसियत बहुत कम लोगों में ही होती है। बहुत से बच्चे एमबीबीएस करना चाहते हैं, लेकिन इतनी महंगी फीस होने की वजह से वे पीछे हट जाते हैं। यदि प्रदेश सरकार कानून बनाकर डॉक्टरी की पढ़ाई को सस्ती कर दे और मेडिकल कालेजों में सीट बढ़ा दे, तो प्रदेश को डॉक्टरों की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा।
-संजय मग्गू