प्रकाश प्रकीर्णन के क्षेत्र में खोज करने के लिए विख्यात सर चंद्रशेखर वेंकट रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 में हुआ था। सर सीवी रमन और उनके शिष्य केएस कृष्णन ने स्पेक्टोग्राफ पर प्रयोग करते हुए पाया था कि जब प्रकाश किसी पारदर्शी वस्तु से होकर गुजरता है, तो विक्षेपित प्रकाश अपनी तरंगदैर्ध्य और आवृत्ति बदल देता है। बाद में इसी रमन प्रकीर्णन या रमन प्रभाव की खोज के लिए उन्हें 1930 में भौतिकी का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। उन्होंने 16 साल की उम्र में प्रेसीडेंसी कॉलेज से भौतिकी में आनर्स के साथ मद्रास विश्वविद्यालय की स्नातक डिग्री परीक्षा में टॉप किया था।
उन्होंने 1948 में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। उन दिनों उन्हें कुछ अच्छे वैज्ञानिकों की तलाश थी जो भौतिकी क्षेत्र में होने वाले प्रयोगों में उनकी सहायता कर सकें। एक युवक उनके पास नौकरी के लिए आया। उन्होंने उसका साक्षात्कार लिया। लेकिन एक महत्वपूर्ण सवाल का वह जवाब अच्छी तरह से नहीं दे पाया। सर रमन ने उस युवक से कहा कि तुम इस संस्थान में काम पाने की आशा मत रखो। अपने घर चले जाओ।
जाते समय कार्यालय में अपने आने-जाने का किराया ले लो। इतना कहकर वह अपने काम में व्यस्त हो गए। काफी देर बाद जब वह बाहर निकले तो देखा कि वह युवक बरामदे में चक्कर लगा रहा है। उन्होंने कहा कि चक्कर लगाने से नौकरी नहीं मिलेगी। उस युवक ने कहा कि सर, मैं नौकरी के लिए चक्कर नहीं लगा रहा हूं। क्लर्क ने किराया में पांच रुपये ज्यादा दे दिए हैं। वही लौटाने के लिए खड़ा हूं। वह कहीं गए हुए हैं। यह सुनकर सीवी रमन ने उस युवक से कहा कि तुम कल पैसा जमा कर देना और अपना नियुक्ति पत्र भी लेना। मुझे ईमानदार वैज्ञानिक की जरूरत है।
-अशोक मिश्र
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