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प्रचंड गर्मी के लिए प्रकृति के साथ पूरा मानव समाज जिम्मेदार

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राजनीतिक रूप से तो प्रदेश का पारा चढ़ा ही है, लेकिन सूरज ने भी अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया है। पूरा उत्तर भारत लू और प्रचंड गर्मी की चपेट में है। इंसान तो क्या पशु-पक्षी, जीव जंतु तक व्याकुल हो रहे हैं। हालात कितने चिंताजनक हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जम्मू और हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेशों में भी पारा 40 डिग्री सेल्सियस से पार चला गया है। जिन राज्यों में लोग गर्मी के मौसम में शीतलता तलाशने के लिए जाते थे, अब उन राज्यों की स्थिति भी मैदानी प्रदेशों की तरह होने लगी है। जब जम्मू और कश्मीर के कई जिलों और हिमाचल के शिमला, कुल्लू, मनाली, धर्मशाला, ऊना और हमीरपुर जैसे जिलों में पारा 40 के पार हो जाएगा, तो लोग वहां क्यों जाएंगे?

इन स्थितियों के लिए प्राकृतिक घटनाओं को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अभी कुछ दिन पहले सूर्य की सतह पर उठे सौर तूफान को जिम्मेदार ठहराकर हम भले ही संतोष कर लें, लेकिन प्रचंड गर्मी और लू का कारण सिर्फ यही नहीं है। हमने अपने चारों ओर जिस तरह सीमेंट का जंगल उगाया है, पेड़ों को काटकर एक्सप्रेस वे और चौड़ी-चौड़ी तारकोल और सीमेंट की सड़कें बनाई हैं, उसका भी नतीजा प्रचंड गर्मी और लू है। हरियाणा में भी पिछले कई साल से गर्मी का रिकार्ड टूट रहा है। दक्षिण हरियाणा के महेंद्रगढ़ में शुक्रवार को पारा 46 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

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सिरसा में महेंद्रगढ़ की अपेक्षा एक डिग्री पारा ज्यादा था। शुक्रवार को पंजाब में दो, दिल्ली में आठ, हरियाणा में 18 और राजस्थान में 19 जगहों पर पारा 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा। अगले पांच-छह दिन तक राहत मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। अगर पांच-छह दिन बाद राहत मिल भी गई, तो भविष्य में ऐसी स्थिति पैदा नहीं होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। पिछले कुछ दशकों से लगातार मौसम में बदलाव देखने को मिल रहा है। पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। आज से चार-पांच दशक पहले सीमेंटेड और तारकोल की सड़कें सीमित थीं। मकान भी पक्के नहीं थे। कच्चे मकान और जमीन गर्मी के दिनों में ऊष्मा का अवशोषण कर लेती थीं।

जमीन के नीचे गई उष्मा ठंडी हो जाती थी। लेकिन जब से सीमेंट और तारकोल का अधिक उपयोग होने लगा है, तब से पृथ्वी पर आने वाली ऊष्मा कम ही अवशोषित हो पाती है। नतीजा यह होता है कि वह हमारे वायुमंडल में मौजूद रहती है। इससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है। प्रदूषण को कम करने वाले पेड़-पौधे भी लगातार घटते जा रहे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। गर्मी बढ़ने का एक कारण प्रदूषण भी है। प्रदेश में जो इलाका सबसे ज्यादा प्रदूषित होता है, उस क्षेत्र में गर्मी ज्यादा पड़ती है। भिन्न-भिन्न जगहों के तापमान में अंतर का एक कारण यह भी है।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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