पूरा उत्तर भारत प्रचंड गर्मी की वजह से परेशान है। दिल्ली के साथ-साथ हरियाणा भी गंभीर जल संकट के दौर से गुजर रहा है। दिल्ली तो हरियाणा से अतिरिक्त पानी की मांग कर रहा है, जबकि हकीकत यह है कि हरियाणा पहले से ही जल संकट झेल रहा है। लगभग हर जिलों में पानी की सप्लाई जरूरत से कम हो पा रही है। हालात कितने बुरे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के कुल 141 ब्लॉकों में से 85 ब्लॉक रेड जोन में आ गए हैं। प्रदेश के कुल 7287 गांवों में से 3041 गांव पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। इनमें से 1948 गांवों में तो पानी की समस्या काफी गंभीर हो गई है। गांवों और शहरों में पानी को लेकर लोग काफी परेशान हैं। जल संसाधन प्राधिकरण द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक, प्रदेश में जल संकट की स्थिति बनी हुई है। हरियाणा में पानी की मांग प्रति वर्ष 34,96,276 करोड़ लीटर है, जबकि 20,93,598 करोड़ लीटर की ही आपूर्ति होती है।
हर साल लोग 14 लाख करोड़ लीटर पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। सर्वे में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले दो सालों में 9,63,700 लीटर पानी की मांग और बढ़ेगी। ऐसी स्थिति में प्रदेश को किन संकट का सामना करना पड़ सकता है, इसकी कल्पना की जा सकती है। राज्य के 14 जिलों में भूजल स्तर 30 मीटर से भी नीचे जा चुका है। हरियाणा के 6150 गांवों में बीते दो सालों में भूजल स्तर नीचे गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के अनुसार हरियाणा के 40391.5 वर्ग किमी में से 24772.68 वर्ग किमी यानी 61.33 प्रतिशत क्षेत्र अत्यधिक भूजल दोहन वाला क्षेत्र है। हालांकि, ऐसे में गांवों में सटीक भूजल स्तर की निगरानी के लिए डार्क जोन के गांवों में 1000 पीजोमीटर स्थापित करने का काम शुरू हुआ है।
हमारे प्रदेश के जल संकट का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि जल का एक बहुत बड़ा हिस्सा सीवेज और औद्योगिक कचरे के रूप में प्रदूषित हो जाता है। हमारे प्रदेश के नीति-निर्धारक यदि एक ऐसा तंत्र विकसित करें कि औद्योगिक कचरे और सीवेज के पानी को शोधित करके उन्हें दोबारा उपयोग के लायक बनाया जा सके, तो स्थितियां थोड़ी बेहतर हो सकती हैं। लेकिन इस व्यवस्था को लागू करने के लिए समय चाहिए। जलसंकट सामने है। इससे मुंह चुराया नहीं जा सकता है। फिलहाल, जरूरत यह है कि पानी का उपयोग बहुत सोच-समझकर किया जाए। फालतू पानी को सहेजकर रखने की व्यवस्था की जाए। जब मानूसन आने के बाद बारिश हो, तो उस पानी को सहेजने की व्यवस्था की जाए। तालाबों, कुओं आदि के माध्यम से जल संचय ही जलसंकट से निपटने का सबसे आसान तरीका है। बरसात के दिनों में भूगर्भ जल स्तर में सुधार लाने का हर संभव प्रयास किया जाए।
-संजय मग्गू
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