ईरान का बादशाह नौशेरवां बहुत न्यायप्रिय था। उसने अपने महल के एक हिस्से को अदालत का रूप दे रखा था। उसने महल में ही एक जंजीर लटका रखी थी जो एक घंटे से जुड़ी हुई थी। कोई भी व्यक्ति जब चाहे उस घंटे को खींचकर अपनी पीड़ा बादशाह को बता सकता था। अपने साथ हुए अन्याय के लिए न्याय मांग सकता था। भारत में मुगल बादशाह जहांगीर ने भी नौशेरवां की देखा-देखी अपने यहां भी घंटा टंगवाया था। कहा जाता है कि नौशेरवां अपने आचरण को लेकर बहुत सतर्क रहता था। एक बार की बात है। वह अपने नौकरों चाकरों के साथ घूमने निकला।
घूमते-घूमते शाम हो गई, उसने अपने सेवकों से कहा कि आज रात यहीं विश्राम किया जाएगा। खाना बनाने की तैयारी करो। जब बादशाह नौशेरवां खाना खाने बैठा, तो उसे महसूस हुआ कि खाने में नमक कम है। उस समय शिविर में अतिरिक्त नमक भी नहीं था। बादशाह ने अपने सेवक को बुलाया और कहा कि पड़ोस के गांव में जाकर नमक ले आओ। लेकिन नमक का पैसा जरूर अदा कर देना। उस सेवक ने कहा कि थोड़े से नमक का कौन पैसा लेगा।
वह तो यह सोचकर खुश हो जाएगा कि बादशाह सलामत ने नमक मंगवाया है, वह यही सोचकर प्रसन्न हो जाएगा। यह सुनकर बादशाह नौशेरवां ने कहा कि यही सोच गलत है। अगर मैं किसी केबाग से एक फल तोड़ लूंगा, तो मेरे सैनिक उस बाग से सैकड़ों फल तोड़ लेंगे। इस तरह पूरा बाग उजड़ जाएगा। राजा जैसा आचरण करता है, उससे जुड़े लोग भी वैसा ही करते हैं बल्कि बुरे कामों में तो वे बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। यह सुनकर सेवक समझ गया। उसने गांव में जाकर नमक लिया और उसके पैसे अदा किया। अपने आचरण की वजह से नौशेरवां आज भी याद किया जाता है।
-अशोक मिश्र