दादोजी कोंडदेव ने मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी को सैन्य और धार्मिक शिक्षा दी थी। शिवाजी के पिता शाहजी की पूना की जागीर और उनके परिवार की देखभाल और सुरक्षा की जिम्मेदारी दादोजी कोंडदेव को सौंपी गई थी। कोंडदेव ने ही युवा शिवाजी के मन में दूसरों का आदर करने और न्याय पथ से कभी न डिगने की प्रेरणा और शिक्षा दी थी। कहा जाता है कि वे चकबंदी के मामले में बहुत बड़े विशेषज्ञ थे।
इनकी देखभाल में पूना प्रांत में खेती किसानी में काफी हद तक सुधार हुआ। हर साल फसल होने पर अनाज के रूप में लगान लेने की व्यवस्था दादोजी कोंडदेव ने ही शुरू की थी, जिसको बाद में पूरे देश में अंग्रेजों ने लागू किया था। कहा जाता है कि एक बार वे दरबार से घर जा रहे थे। रास्ते में शिवाजी का एक बाग पड़ता था। उस बाग में उन्नत किस्म के आम लगे हुए थे। उन आमों को देखकर कोंडदेव जी का मन ललचा गया। उनके कदम ठिठक गए। उन्होंने एक बार सोचा कि इसके बारे में शिवाजी महाराज से इजाजत ले ली जाए, लेकिन फिर मन में आया कि अब दरबार में कौन लौटकर जाए। उन्होंने कुछ आम तोड़े और घर ले जाकर पत्नी को दे दिया।
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उनकी पत्नी ने पूछा कि यह आम कहां से मिल गए? तब उन्होंने सारी बात बताई। यह सुनकर उनकी पत्नी ने कहा कि यह तो चोरी हुई? चोरी की सजा तो आप जानते हैं। नियम के मामले में काफी कठोर कोंडदेव ने अपने हाथ को काटने का निश्चय किया, लेकिन उनकी पत्नी ने उन्हें रोकते हुए कहा कि आज से प्रण कीजिए कि कभी चोरी नहीं करेंगे। इसके बाद उन्होंने अपने कुर्ते की दोनों बाहें काट दी। जीवन भर उन्होंने बिना बांह का कुर्ता पहना। लोगों ने जब इसका कारण पूछा, तो सारी घटना सच-सच बता दी।
-अशोक मिश्र
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