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हरियाणा में आत्महत्या की घटती प्रवृत्ति एक सकारात्मक संकेत

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देश रोज़ाना: आत्महत्या की घटनाएं इधर कुछ वर्षों से पूरे देश बढ़ रही हैं। यह काफी चिंताजनक है। आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं के बीच यह भी विचारणीय है कि वे कौन सी सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिस्थितियां हैं जिनकी वजह से लोग आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। वैसे मनोचिकित्सकों का कहना है कि जब व्यक्ति किन्हीं विशेष कारणों या विषाद के चलते आत्महत्या का फैसला करता है, तो उसके फैसले से पहले और बाद के कुल चार-पांच मिनट बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। यदि उस दौरान व्यक्ति का ध्यान बंटा दिया जाए, तो वह आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाएगा। माना जाता है कि अधिकतम चार-पांच मिनट के बाद व्यक्ति के आत्महत्या का आवेग घट जाता है और फिर व्यक्ति आत्महत्या के फैसले से पीछे हट जाता है।

हरियाणा में भी आत्महत्या के मामले घट रहे हैं। यदि आंकड़ों के आधार पर बात की जाए, तो वर्ष 2022 में 3783 लोगों ने आत्महत्या की थी। इस दौरान आत्महत्या की दर 12.6 प्रतिशत रही थी, जबकि इसी मामले में राष्ट्रीय दर 12.4 थी। इससे एक साल पहले हरियाणा में 3692 लोगों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली थी जबकि इस वर्ष आत्महत्या दर 12.5 रही। एक तरफ तो राष्ट्रीय स्तर पर आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं, वहीं हरियाणा में यह स्तर घट रहा है। इसका मतलब यह है कि हरियाणा में जीवन की प्रत्याशा बढ़ रही है। ऐसा तभी होता है जब प्रदेश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होती हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिस्थितियां लोगों के अनुकूल होती हैं। लोगों का जीवन स्तर जब उच्च से उच्चतर होता जाता है, तो आत्महत्या जैसी घटनाएं कम होती जाती हैं। आत्महत्या करने वालों में पुरुषों की संख्या ज्यादा होती है।

आत्महत्या के प्रमुख कारणों में वैवाहिक संबंधों का खराब होना, घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले, गंभीर बीमारियां आदि हैं। शहरों में गांवों की अपेक्षा ज्यादा मामले देखे गए हैं। 29 मई 2018 केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख अधिनियम 2017 के मुताबिक आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति के खिलाफ किसी भी प्रकार का मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता हुआ पाया जाता है, तो पुलिस उसको गिरफ्तार नहीं कर सकती है।

इतना ही नहीं, उस पर किसी भी तरह का जुर्माना भी नहीं लगाया जा सकता है। अधिनियम पारित होने से पहले पुलिस ऐसे व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करके अदालत में पेश करती थी। अदालत उस व्यक्ति को सजा भी देती थी। आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति की देखरेख, उपचार और पुनर्वास की जिम्मेदारी सरकार पर छोड़ दी गई है ताकि भविष्य में वह व्यक्ति दोबारा ऐसी गलती न कर सके।

-संजय मग्गू

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