एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का यदि सदुपयोग किया जाए, तो मानव समाज के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। एआई की मदद से गंभीर से गंभीर रोगों को पहचानने, उनका इलाज करने में काफी हद तक सफलता मिल रही है। कई जटिल आपरेशनों को भी एआई के माध्यम से बड़ी आसानी से अंजाम दिया जा रहा है। एआई ने स्पेस टेक्नोलॉजी को बहुत आसान बना दिया है। दूर संचार, शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन जैसे न जाने कितने क्षेत्रों में अपनी न केवल पहचान बनाई है, बल्कि अपनी उपयोगिता भी सिद्ध की है। एआई का उपयोग करके दूरदराज के इलाकों में न केवल सफलता से खेती की जा सकती है, बल्कि उन क्षेत्रों में पैदा होने वाली कई तरह की समस्याओं का समाधान भी किया जा सकता है। उन इलाकों में आने वाली विपदाओं पर नजर रखी जा सकती है और समय पर वहां के लोगों को मदद भी पहुंचाई जा सकती है।
लेकिन एआई को लेकर एक बहुत बड़ा समुदाय ऐसा भी है जिसे एआई के भविष्य को लेकर बहुत गहरी चिंता है। वह इसके कटु आलोचक हैं। वे इसे विज्ञान का सबसे खतरनाक आविष्कार मानते हैं ठीक प्लास्टिक के आविष्कार की तरह। वैसे भी कहा जाता है कि प्लास्टिक का आविष्कार वैज्ञानिक की गलती से हो गया था। शुरुआत में प्लास्टिक को बड़ा उपयोगी माना गया, लेकिन आज प्लास्टिक पूरी पृथ्वी के लिए एक अभिशाप से ज्यादा कुछ नहीं है। पूरी दुनिया में प्लास्टिक को लेकर परेशान है। लोगों से इसका इस्तेमाल न करने की अपील की जा रही है, लेकिन लोग हैं कि मान ही नहीं रहे हैं। ठीक यही हाल कुछ दशकों में एआई के मामले में होने वाला है। एआई विरोधियों का मानना है कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब पूरी दुनिया पर एआई से संचालित मशीनों का राज होगा।
यह मानव का सबसे खतरनाक सृजन है। प्रसिद्ध दार्शनिक और इतिहासकार युवाल नोआ हरारी ने अपनी पुस्तक नेक्सस में चेतावनी दी है कि एआई में पूरी मानव सभ्यता को नष्ट करने की क्षमता है। यदि एआई के मामले में सावधानी नहीं बरती गई, तो हो सकता है कि कुछ वर्षों में एक नए किस्म का विश्वयुद्ध शुरू हो जाए। यह विश्वयुद्ध देशों के बीच होने के बजाय एआई (जिसे वे एलियन इंटेलिजेंस कहते हैं) और मानव जाति के बीच होगा। यदि हम हरारी की इस बात को नकार दें, तो भी एआई के खतरे कम नहीं हैं।
आधुनिक खोजों ने मनुष्य के मस्तिष्क की सक्रियता को ही प्रभावित किया है। कैल्कुलेटर जैसी चीजों के आविष्कार ने हमारे बच्चों को टेबल्स याद करने की जरूरत को खत्म कर दिया। मोबाइल फोन आने के बाद लोगों को फोन नंबर याद रखने जरूरत ही नहीं रह गई। नतीजा यह हो रहा है कि हमारी याददाश्त कमजोर होती जा रही है। हम पूरी तरह मशीनों पर निर्भर होते जा रहे हैं। अब जब एआई हमारे लिए सोचने या याद रखने संबंधी हर काम को अंजाम दे देगा, तो हमारी भावी पीढ़ी का मस्तिष्क कैसा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है।
-संजय मग्गू