अमेरिकी दार्शनिक और प्रसिद्ध लेखक एरिक हॉपर ने ‘द ट्रू बिलीवर: थॉट्स आॅन द नेचर आॅफ मास मूवमेंट्स’ नामक किताब लिखी है। इस किताब को काफी लोकप्रियता मिली थी। द्वितीय विश्व युद््ध के बाद रिलीज की गई इस पुस्तक में यह बताने की कोशिश की गई थी कि नाजीवाद, फासीवाद और स्टालिनवाद ने दुनिया भर के मजदूर आंदोलनों को काफी नुकसान पहुंचाया था। जब उनकी किताब रिलीज हुई थी, उन्हीं दिनों अमेरिका और रूस में शीतयुद्ध की शुरुआत हुई थी। एक बार की बात है। एरिक हॉपर जहां नौकरी करते थे, वह नौकरी छूट गई।
उन्होंने नौकरी खोजने की बहुत कोशिश की, लेकिन नौकरी मिली नहीं। उन्हें तीन-चार दिन हो गए थे खाना खाए हुए। वे काम की तलाश में घूमते हुए एक होटल पहुंचे। उस होटल का मालिक उन्हें पहचानता था और वह उनके लेखन से प्रभावित भी था। उसने एरिक से पूछा कि आप क्या खाएंगे? हॉपर ने कहा कि मैं खाना तो चाहता हूं। मैं कई दिन का भूखा हूं, लेकिन मेरी एक शर्त है। मेरे पास खाने का बिल चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं। मैं खाना खाने के बाद आपके यहां कुछ काम करना चाहता हंू। मैं मुफ्त में खाना नहीं चाहता।
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उनकी बात सुनकर होटल का मालिक आश्चर्यचकित रह गया कि इतने बड़े लेखक के पास खाने के पैसे नहीं हैं। उसने हॉपर की बात मान ली। भरपेट खाना खाने के बाद हॉपर ने कुछ घंटे वहां काम किया। अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर बाद में एरिक हॉपर ने पूरी दुनिया में नाम कमाया। उन्होंने अपने जीवन के शुरुआती 23 साल कृषि मजदूर की तरह बिताए थे, लेकिन उन्होंने कभी पढ़ना नहीं छोड़ा। वह खूब मेहनत करते थे और खूब पढ़ाई करते थे। यही वजह है कि वे मजदूर आंदोलन पर खूब लिख पाए।
-अशोक मिश्र
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