जब कोई धावक दौड़ता है, तो वह यह भूल जाता है कि उसके आसपास मौजूद लोग उसे उत्साहित करने के लिए शोर मचा रहे हैं। वह यह भी भूल जाता है कि उसके साथ दौड़ने वाले उससे आगे हैं या पीछे। वह यह भूल जाता है कि उसे अभी कितना और दौड़ना है। उसका दिमाग, उसकी मांसपेशियां, उसके पैर और पैर में पहने जूते एक लय, एक ताल में गतिशील रहते हैं। जब कोई व्यक्ति अपने काम में इतना खो जाए कि उसे अपने आसपास का ज्ञान ही न रहे, तो उसे कहते हैं कि वह आदमी अपनी फ्लो में आ गया है। यह फ्लो ही हमारी क्षमता को बढ़ाता है, कार्य को पूर्णता की ओर ले जाता है। जब कोई काम मन से एकदम उसमें खोकर किया जाता है, तो मन में आनंद की अनुभूति होती है। यह अनुभूति ही मनुष्य को तमाम बीमारियों, दबावों और तनावों से मुक्ति दिलाती है।
किसी कलाकार को देखिए। जब वह अभिनय कर रहा होता है, तो वह यह भूल जाता है कि वह कौन है? बस, उसे याद रहता है तो सिर्फ वह पात्र जिसका वह अभिनय कर रहा होता है। उसे अभिनय करने में एक खुशी का अनुभव होता है। यह फ्लो यानी प्रवाह आता कैसे है? इसके लिए आदमी में जुनून चाहिए। यह जुनून ही आदमी को अपने काम में इतना खो जाने को प्रेरित करता है। अगर आदमी अपने मन, चेतना और कार्य कौशल को आत्मसात करते हुए एकाग्रचित्त से काम करता है, तो उसे ही अध्यात्म की भाषा में एकात्म कहा जाता है। इंसान अगर टीम में काम कर रहा है। उस टीम का लीडर है, तो कोई जरूरी नहीं है कि उस टीम का हर आदमी मल्टी टास्किंग हो, यह कोई जरूरी नहीं है। जो जिस काम में माहिर है, उसको वही काम सौंपकर देखिए, अगर उस व्यक्ति में जुनून है और वह प्रवाह में आने का अभ्यासी है, तो फिर उसका काम कितना लाजवाब होगा, इसकी कल्पना की जा सकती है।
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हर आदमी हर काम में माहिर हो, ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता है। टीम लीडर को बस अपनी टीम के हर सदस्य के गुण और कौशल को पहचानना होगा। इसके लिए जरूरी है कि आदमी जोखिम उठाना जानता हो। बिना जोखिम उठाए, कोई उपलब्धि हासिल नहीं की जा सकती है। फ्लो यानी प्रवाह में आने के लिए सबसे जरूरी है कि इंसान तब तक अभ्यास करता रहे, जब तक वह अपने फ्लो को हासिल न कर ले। यदि फ्लो में आने की कला विकसित हो गई, तो अपनी मानसिक क्षमता को किस हद तक बढ़ाया जा सकता है, इसको सोचा नहीं जा सकता है।
बिहेवियर जेनेटिक्स पर रिसर्च करने वालों की बात पर विश्वास करें तो मनुष्य अपनी मानसिक क्षमता में पांच सौ प्रतिशत का इजाफा कर सकता है। जब किसी व्यक्ति को असंभव कार्य को संभव बनाते हुए देखते हैं, तो उस कार्य के पीछे एक जुनून और कार्य में फ्लो की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कार्य के प्रति फ्लो हर आदमी में हो, यह मुमकिन नहीं है, लेकिन हर आदमी चाहे तो यह हासिल कर सकता है। जब इंसान किसी काम को चुनौती की तरह लेता है, तो वह पहले अपनी क्षमता को तौलता है, फिर उसमें एक जुनून पैदा होता है और फिर फ्लो में आने पर वह उस कार्य को भी कर डालने में सक्षम होता है, जिसको वह पहले असंभव मान चुका होता है। यही फ्लो का कमाल है।
-संजय मग्गू
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