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HomeEDITORIAL News in Hindiदूर हो गया राजमाता मीलणदेवी का अहंकार

दूर हो गया राजमाता मीलणदेवी का अहंकार

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अहंकार से कभी किसी का भला नहीं होता है। अहंकारी व्यक्ति की मान-प्रतिष्ठा पर तो धब्बा लगता ही है, लोग उसे प्यार भी नहीं करते हैं। अहंकारी व्यक्ति समाज के लिए त्याज्य समझ लिया जाता है। अहंकार को हमारे देश में एक विकार की तरह माना गया है। एक बार की बात है। गुजरात के एक राज्य की राजमाता मीलण देवी ने भगवान सोमनाथ को तुलादान करके सोने अर्पित किए। सोना राजमाता मीलणदेवी के वजन के बराबर था। यह सब करने के बाद उनके मन में यह भाव पैदा हुआ कि आज तक भगवान सोमनाथ को किसी ने इतना सोना दान में नहीं दिया है।

ऐसा करने वाली एक वही हैं। इस भाव के पैदा होते ही उनका व्यवहार बदल गया। वह गर्व से अपना सिर ऊंचा उठाए राजमहल आईं और रोज के काम निबटाए, जैसा राजमाता की दिनचर्या थी। रात में जब वह सो रही थीं तो उन्हें भगवान सोमनाथ सपने में नजर आए। सपने में सोमनाथ ने राजमाता से कहा कि मेरे मंदिर में एक महिला दर्शन करने आई है। उसके पास पुण्य बहुत संचित हैं। उससे तुम कुछ पुण्य स्वर्ण मुद्राएं देकर खरीद लो।

परलोक में काम आएंगे। इसके बाद उनकी नींद टूट गई। उन्होंने सैनिकों को भेजकर उस महिला को बुलाया। राज महल लाए जाने से वह भिखारिन बहुत डरी हुई थी। उससे राजमाता ने कहा कि तुम मुझे अपना कुछ पुण्य दे दो, मैं तुम्हें सोने की मुद्राएं दूंगी। उस महिला ने कहा कि मेरे पास पुण्य कहां? मैं तो गरीब हूं। कल मंदिर में दर्शन करने से पहले मुझे थोड़ा सत्तू मिला था। आधा मैंने भगवान को भोग लगा दिया। बाकी बचा आधा मैंने एक भूखे भिखारी को खिला दिया। ऐसी स्थिति में मेरे पास पुण्य कहां होगा? राजमाता उसकी बात सुनकर समझ गईं कि भगवान सोमनाथ उन्हें क्या समझाना चाहते थे। उनका अहंकार उसी समय खत्म हो गया।

-अशोक मिश्र

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