हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधू और भिवानी के तोशाम की विधायक किरण चौधरी और उनकी पूर्व सांसद पुत्री ऋतु चौधरी के भाजपा में शामिल होने के बाद भी मामला शांत होता नजर नहीं आ रहा है। दोनों ओर से आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। एक दूसरे पर फब्तियां कसी जा रही है। किरण चौधरी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके पुत्र को निशाने पर ले रही हैं, तो वहीं कांग्रेसी भी उन पर विश्वासघात करने का आरोप लगा रहे हैं। इस मामले में बीच-बीच में भाजपा भी कूद पड़ती है क्योंकि अब किरण चौधरी और ऋतु चौधरी उनकी पार्टी की सदस्य हैं। मां-बेटी दोनों को उम्मीद है कि निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान उन्हें भाजपा से टिकट मिल सकता है। इसीलिए वह कांग्रेस पर बुरी तरह हमलावर हैं।
कांग्रेस भी इन दोनों मां-बेटी को घेरने और कटु वचन कहने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। राजनीतिक बयानबाजियां और एक दूसरे पर छींटाकशी कोई नई बात नहीं है। कई बार तो यह प्रतिद्वंद्विता चरित्र हनन पर उतर आती है। कांग्रेस के हिसार सांसद जय प्रकाश उर्फ जेपी ने यहां तक कह दिया है कि विरासत महिलाओं की नहीं, पुरुषों की होती है। किरण चौधरी और ऋतु चौधरी पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की वारिस नहीं हैं। दरअसल, किरण चौधरी पिछले कुछ महीनों में यह बात दोहरा चुकी हैं कि वे चौधरी बंसीलाल की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। वे चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधू होने की वजह से उनकी विरासत को आगे बढ़ाने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ेंगी..आदि आदि।
यदि पुरुषवादी मानसिकता से इस मुद्दे पर बात करें तो यह सच है कि वंश पुरुष ही आगे बढ़ाता है। लेकिन यह सोच ही महिला विरोधी नजर आती है क्योंकि पुरुष अकेले अपना या अपने पूर्वजों का वंश कतई आगे नहीं बढ़ा सकता है। उसके लिए उसे महिला की अनिवार्य आवश्यकता होती है। जब वंश को जन्म देने में स्त्री-पुरुष दोनों की सहभागिता होती है, तो विरासत में सहभागिता क्यों नहीं हो सकती है।
आज स्त्रियां वह सब कुछ कर रही हैं जिन कार्यों पर कभी पुरुषों का एकाधिकार माना जाता था। लड़ाकू विमान उड़ाने से लेकर अंतरिक्ष में सैर करने जैसे जोखिम के काम भी महिलाएं बड़ी कुशलता और साहस के साथ अंजाम दे रही हैं। सेना में भी महिलाएं पुरुषों की तरह निडरता के साथ दुश्मनों के साथ मोर्चा ले रही हैं। बाकी जीवन के सामान्य काम हैं, उनमें कहीं भी महिलाएं पीछे नहीं हैं। तो फिर सिर्फ विरासत में हिस्सेदारी देने से पुरुषों में हिचक क्यों हो रही है? क्योंकि इससे उनके अहम को चोट पहुंचती है? इस मामले में उनका एकाधिकार प्रभावित होता है। महिलाएं बराबरी की हकदार थीं, हैं और रहेंगी।
-संजय मग्गू