हमारे धर्म ग्रंथों में कर्तव्य और अधिकार की खूब अच्छी विवेचना की गई है। कर्तव्य और अधिकार एक दूसरे के पूरक बताए गए हैं। यानी जहां कर्तव्य है, वहीं अधिकार भी है। जब एक आदमी अपना कर्तव्य पूरा करता है, तो उसे कर्तव्य पूर्ति के एवज में अधिकार स्वयमेव हासिल हो जाता है। यह बात अलग है कि कुछ लोग अपना कर्तव्य तो पूरा करते हैं, लेकिन अधिकार का उपयोग करना भूल जाते हैं। इसमें कुछ भेद भी दिखाई देता है। जैसे कोई नौकर अपना कर्तव्य पूरा करता है, लेकिन उसके पास वेतन पाने के अलावा कोई दूसरा अधिकार शायद ही उसका मालिक देता हो।
यही वजह है कि नौकर अपना कर्तव्य पूरा करने के बाद अधिकार की बात नहीं करता है। एक बार की बात है। अवध क्षेत्र के राजा करण और उसके पड़ोसी राजा ध्रुव में खूब गाढ़ी मित्रता थी। एक हुआ यह कि राजा ध्रुव बिना कोई सूचना दिए, राजा करण के यहां पहुंच गए। उनको आया देखकर राजा करण खूब प्रसन्न हुए। उन्होंने राजा ध्रुव की खूब आवभगत की। उनके लिए एक विशेष दरबार की व्यवस्था की। जब दरबार में सारे दरबारी उपस्थित हो गए, तो उन्हें अपने नौकर को हुक्का लाने का हुक्म दिया। उन दिनों अवध क्षेत्र में हुक्के का प्रचलन शुरू हो चुका था।
यह भी पढ़ें : चुनावों में एआई के उपयोग में सावधानी की जरूरत
नौकर ने हुक्का तैयार किया और उसे लेकर दरबार में पहुंचा। अब उसके सामने संकट यह पैदा हुआ कि वह हुक्का किसके सामने रखे। राजा ने उसे इशारा किया कि वह ध्रुव के सामने हुक्का रखे, लेकिन उसने अपने राजा के सामने हुक्का रख दिया। राजा करण नाराज हो गए। उन्होंने डांटा तो नौकर ने कहा कि मेरा कर्तव्य आपकी सेवा करना है। अब आपका कर्तव्य है कि आप अपने मेहमान का स्वागत करें। यह सुनकर राजा करण ने उस नौकर की खूब प्रशंसा की।
-अशोक मिश्र
लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/