सुकरात अपने युग के सबसे चर्चित और महान दार्शनिक थे। कहा जाता है कि वह असुंदर थे यानी देखने में वह काफी कुरुप थे। इसके बावजूद लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे। उन्हें तत्कालीन शासन के खिलाफ लोगों को भड़काने के आरोप में मौत की सजा प्रदान की गई थी। उन दिनों जिसे मौत की सजा दी जाती थी, उसे जहर का प्याला पीने को दिया जाता था। एक बार की बात है। सुकरात के पास एक दृष्टिहीन व्यक्ति आया और उसने सुकरात से पूछा कि क्या मेरी आंखें ठीक हो सकती हैं? मैं जन्मजात अंधा हूं। सुकरात ने कुछ देर तक सोचा और फिर कहा, हां, आपकी आंखें ठीक हो सकती हैं।
लेकिन आप क्या देखना चाहते हैं? उस व्यक्ति ने कहा कि मैंने सुना है कि दुनिया बहुत खूबसूरत है। इस खूबसूरत दुनिया को देखने की मुझमें प्रबल आकांक्षा है। यह सुनकर सुकरात मुस्कुराए और बोले, आपने बिल्कुल सही सुना है। दुनिय सचमुच बहुत सुंदर है, लेकिन यह जितनी सुनने में सुंदर लगती है, उतनी देखने में नहीं है। उस व्यक्ति को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। उसने पूछा कि वह कैसे? सुकरात ने जवाब दिया कि तुम्हारी आंखें नहीं हैं।
तुम बाहर से अंधे हो, लेकिन मन से तुम दृष्टि युक्त हो। तुम्हारा मन सुंदर है। लेकिन जिन लोगों की दृष्टि है, वे भीतर से अंधे हैं यानी उनके मन में छल है, कपट है, दुराचार है, लोभ है और मोह जैसी विकृतियां हैं। यह पूरा संसार अंदर से अंधा है। यहां हिंसा और अनाचार का बोलबाला है। झूठ, छल और प्रपंच इतना भरा हुआ है कि यदि तुम्हें आंखें मिल गईं तो तुम दो दिन बाद ही यह कहोगे कि मैं अंधा था, तभी अच्छा था। कम से कम यह सब कुछ तो नहीं देखता था। यह सुनकर वह आदमी सुकरात की बात समझ गया।
-अशोक मिश्र