कालिदास दुनिया के पांच महान कवियों में से एक माने जाते हैं। कहा जाता है कि पहली शताब्दी ईसा पूर्व में जन्मे शुंग शासक पुष्यमित्र शुंग के दरबारी कवि थे। इन्होंने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी। कुछ लोग धारा नगरी के राजा भोज का दरबारी कवि भी मानते हैं। लेकिन जो प्रमाण मिलते हैं, वह पुष्यमित्र शुंग के पक्ष में ज्यादा जाते हैं। एक बार की बात है, महाकवि कालिदास बाजार की ओर गए। उन्होंने देखा कि एक बुजुर्ग महिला एक मटकी को लिए रास्ते के किनारे बैठी है। उसने मटकी को एक वस्त्र से ढक रखा था।
कालिदास को उत्सुकता हुई कि महिला ऐसी कौन वस्तु बेचने के लिए आई है जिसको ढकने की जरूरत पड़ गई है। वह उस महिला के पास गए और उन्होंने पूछा, माई आप क्या बेच रही हैं? उस बुजुर्ग महिला ने कहा कि मैं पाप बेच रही हूं। मैं जोर से चिल्लाकर कहती हूं कि पाप ले लो। और लोग पैसे देकर पाप खरीदकर ले जाते हैं। कालिदास की समझ में बात नहीं आई। उन्होंने आश्चर्यव्यक्त किया कि क्या, लोग पाप को पैसे देकर खरीदते हैं? आखिर इस मटकी में कौन-कौन पाप हैं। उस महिला ने कहा कि इस मटकी में आठ प्रकार के पाप है।
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कालिदास ने सवाल किया-कैसे? उस महिला ने कहा कि इस मटकी में क्रोध, बुद्धिनाश, यश नाश, स्त्री एवं बच्चों से अत्याचार, चोरी, असत्य जैसे आठ प्रकार के पाप बंद हैं। लोग आते हैं और पैसे देकर खुशी-खुशी पाप खरीदते हैं और चले जाते हैं। कालिदास की अब तक समझ में नहीं आया था तो उन्होंने कह कि आप साफ-साफ बताएं कि क्या बेचती हैं? उस महिला ने कहा कि इस मटकी में मदिरा है। यह सुनते ही कालिदास समझ गए कि महिला सत्य कह रही है। वह चुपचाप अपने आवास लौट आए।
-अशोक मिश्र
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