चुनावी रणभेरी बज उठी है। पहले चरण के मतदान के लिए 19 अप्रैल से शुरू होने वाला मतदान एक जून को खत्म होगा। भाजपा चुनाव से बहुत पहले अपने लिए 370 और एनडीए गठबंधन के लिए चार सौ पार का नारा दे चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर चुनावी रैली में यह नरेटिव गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं कि मतदाता भाजपा को 370 से ज्यादा सीटें जिताने का मन बना चुकी है। यदि भाजपा को इतना ज्यादा भरोसा मतदाताओं पर है, तो फिर छोटे से छोटे दल को अपने साथ मिलाने की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी है। अगर हम पिछले दो लोकसभा चुनावों की बात करें तो वर्ष 2014 और 2019 में पूरा विपक्ष बिखरा हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता चरम पर थी। बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री-पुरुष सभी मोदी-मोदी कर रहे थे। एक प्रचंड मोदी लहर पूरे देश में चल रही थी। ऐसा लगता था कि इस लहर में पूरा विपक्ष बह जाएगा। मोदी जी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस द्वारा कायम किए गए कीर्तिमान 404 को तोड़ देंगे।
वर्ष 2014 से पहले लोग पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ सुनना ही नहीं चाहते थे। मोदी के खिलाफ बोलने पर लोग झगड़ा करने पर उतारू हो जाते थे। उस प्रचंड लोकप्रियता के दौर में भी भाजपा 282 सीटों पर ही काबिज हो पाई। एनडीए को 336 सीटें मिली थीं। साल 2019 में भी भाजपा अपने पुराने रिकार्ड से मात्र 21 और बहुमत के आंकड़े से 31 सीटों की बढ़त बना पाई। इस बार भाजपा का अपना लक्ष्य 370 और एनडीए गठबंधन के लिए कांग्रेस का अधिकतम रिकार्ड 404 सीटों से ज्यादा पर विजय हासिल करना है। इस बार हालात दूसरे हैं। माहौल बनाने के लिए तो यह नारा बहुत माकूल है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है।
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इस बार विपक्ष किसी भी रूप में सही इंडिया गठबंधन के नाम पर संगठित है। जिन राज्यों में इंडिया गठबंधन के लोग अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, वे भी गठबंधन से बाहर जाने का साहस नहीं दिखा पा रहे हैं। वहीं, एनडीए गठबंधन में किसी भी तरह एक प्रतिशत वोट बैंक रखने वाले दलों को भी साथ लाने की लालसा में चिरौरी करनी पड़ रही है। इस बार इलेक्टोरल बांड का पिटारा खुल चुका है। नई-नई जानकारियों से मतदाता चकित है। ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स के विपक्षी दलों पर पड़ रहे छापों की वास्तविकता से लोग रूबरू हो रहे हैं।
विरोधी दलों को ईडी उस तरह से समन बांट रही है जिस तरह से कोई दानदाता उमड़ी भीड़ को खैरात बांटता है। नेताओं को जेल भेजा जा रहा है, खाते फ्रीज किए जा रहे हैं। सच कहा जाए, तो आभामंडल दरक रहा है। महंगाई, बेरोजगारी, काला धन वापसी, हर साल दो करोड़ नौकरियों का वायदा हवा में गूंज रहा है। इसकी काट भाजपा नहीं खोज पा रही है। पुरानी सरकारों को कोस-कोस कर कब तक काम चलाया जाएगा? इन हालात में तो यही कहा जा सकता है कि बहुत कठिन है डगर चार सौ पार की।
-संजय मग्गू
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