सोहना के भोंड़सी थाना क्षेत्र में रविवार को आई बारात में जाति सूचक गाना बजाने पर दो पक्षों में मारपीट हो गई। बात इतनी थी कि बारात में शामिल एक युवक ने एक जाति का गाना बजवाया। इस पर गांव के ही आठ-दस लड़कों ने इसका विरोध किया और कहा कि हमारे गांव में सिर्फ हमारी जाति वाला ही गाना बजेगा। इस पर दोनों पक्षों में मारपीट हो गई। वहीं फरीदाबाद के बल्लभगढ़ में दलित युवक की घुड़चढ़ी के दौरान एक युवक ने जबरदस्ती घुसकर बारात में शामिल महिलाओं के साथ जबरदस्ती डांस किया और विरोध करने पर जातिसूचक गालियां देते हुए घुड़चढ़ी नहीं होने देने की धमकी दी।
एक ही दिन में हुई ये दोनों घटनाएं यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि हमारे समाज में जातीयता का जहर किस तरह घुला हुआ है। शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो, जब दलितों और सवर्णों के बीच होने वाले संघर्ष की घटनाएं प्रकाश में न आती हों। यह जातीय संघर्ष कई सदियों से हमारे देश में होता चला आया है। हमारे दिलोदिमाग में इसने इतनी बुरी तरह घर कर लिया है कि लोग इससे मुक्त नहीं हो पा रहे हैं।
कहा जाता है कि हमारे देश में शुरुआती दौर यानी वैदिक काल में जाति व्यवस्था नहीं थी। तब वर्ण व्यवस्था थी। ब्रह्मा द्वारा चार वर्णोँ की व्यवस्था करने का मिथक आज भी सुना और सुनाया जाता है। वेदों और वैदिक काल में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जैसी व्यवस्था तो पाई जाती है, लेकिन इनमें किसी तरह के भेदभाव का पुुट नहीं मिलता है। यह वर्ण व्यवस्था कार्यों के अनुसार किसी व्यक्ति को पहचानने की एक व्यवस्था भर प्रतीत होती है।
उत्तर वैदिक काल में यानी उपनिषद काल में जरूर ब्राह्मण और क्षत्रिय को समाज में एक विशेष दर्जा दिया गया। इसके बाद ही जातियों का उद्भव माना जाता है। कालांतर में तो समाज इस तरह बनता चला गया कि शूद्र को अस्पृश्य और निचले दर्जे का बना दिया गया। उनके शोषण और दोहन के तमाम रास्ते तलाशे गए। हां, आजादी के बाद हमारे संविधान ने सबको बराबरी का दर्जा दिया।
इस बराबरी के दर्जे का सम्मान करना हमारा संवैधानिक और नागरिक कर्तव्य है। अतीत में जो कुछ हुआ, उसे भूलकर आगे बढ़ने में ही भलाई है। देश और समाज के विकास के लिए अच्छा यही है कि हम जातीयता को भूलकर सिर्फ राष्ट्रीयता को ध्यान में रखें। जाति और धर्म के आधार पर श्रेष्ठता का भाव मन में रखना कतई उचित नहीं है। इस देश के प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार हासिल है। अतीत में जो कुछ हुआ, उसे लौटाया तो नहीं जा सकता है, लेकिन उससे सीख जरूर ली जा सकती है। हम सभी इस देश के नागरिक हैं। जाति और धर्म के आधार पर कोई छोटा-बड़ा नहीं है। हम सबको मिलकर इस देश को उन्नति के शिखर पर ले जाना है, बस यही ध्यान रखना होगा।
-संजय मग्गू