हरियाणा में चुनाव प्रचार चरम पर है। बस, आठ दिन ही बचे हैं चुनाव प्रचार के लिए। 23 मई को शाम से चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा। इसलिए चुनाव मैदान में उतरी सभी पार्टियां मतदाताओं को रिझाने के हर संभव प्रयास कर रही हैं। मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए कहीं आश्वासनों की झड़ी लगाई जा रही है, तो गारंटियों की रेवड़ी बांटी जा रही है। मतदाता इस समय हर पार्टी और उम्मीदवार के लिए तारनहार बना हुआ है। उसके पक्ष में होने पर ही प्रत्याशी चुनावी वैतरणी पार उतर पाएगा। भाजपा, कांग्रेस, इनेलो, जजपा और निर्दलीय प्रत्याशी अपना पूरा दमखम लगा रहे हैं, लेकिन मतदाताओं में इस बार चुप्पी छाई हुई है। आभास ही नहीं मिल रहा है कि इस बार हरियाणा में किसके पक्ष में हवा बह रही है।
भाजपा के प्रत्याशी तो बस पीएम मोदी के सहारे अपनी नैया पार लगाने की आशा बांधे हुए हैं। पीएम मोदी इंडिया गठबंधन पर जो भी तंज कसते हैं, ठीक वैसा ही तंज इंडिया गठबंधन पर भाजपा प्रत्याशी और नेता भी कसने लगते हैं। विरोध में भी लगता है कि मौलिकता नहीं रही। राष्ट्रीय स्तर पर उठाए जाने वाले मुद्दे ही भाजपा नेताओं का आधार बने हुए हैं। रैलियां हो, जनसभा हो या संपर्क अभियान भाजपा प्रत्याशी और नेता धारा 370, चार सौ पार, मोदी की लोकप्रियता, तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने का मोदी का संकल्प जैसी बातों पर ही ध्यान दे रहे हैं। स्थानीय मुद्दे तो जैसे हवा हो गए हैं। इस मामले में कांग्रेस की भी स्थिति कोई बहुत अच्छी नहीं है। वह कोई ऐसा नारा या मुद्दा अब तक नहीं तलाश पाई है जिससे वह भाजपा और भाजपा सरकार को घेर सके।
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तीन निर्दलीय विधायकों के सैनी सरकार से समर्थन वापस लेने के मुद्दे पर ही कांग्रेस अटकी हुई है। इस मुद्दे पर भी वह किसी प्रकार की बढ़त हासिल करती हुई नहीं दिखाई दे रही है। नामांकन के दौरान ऐसा प्रतीत हुआ था कि कांग्रेस के सारे गुट अपना विरोध और वैरभाव भुलाकर एक साथ आ गए हैं, लेकिन बाद में सभी अपनी-अपनी ढफली और अपना-अपना राग अलापने लगे हैं। कांग्रेस के सारे गुट अपने-अपने ही समर्थकों को जिताने की कोशिश में लगे हुए हैं।
जिसकी वजह से मतदाताओं का विश्वास जीतने में नाकाम साबित हो रहे हैं। सरकार विरोधी लहर को अच्छी तरह भुना पाएंगे, ऐसा भी लग नहीं रहा है। कांग्रेस अग्निवीर योजना, महंगाई, घोषणा पत्र की पांच गारंटियों को भी जनता तक पहुंचा नहीं पा रही है। ऐसी हालत में मतदाताओं में कोई उत्साह नहीं दिख रहा है। जजपा और इनेलो अपनी आंतरिक विसंगतियों से जूझ रही हैं। वे एकाध जगह को छोड़कर कहीं अपनी प्रभावी उपस्थिति नहीं दिखा पा रही हैं। ऐसी हालत में प्रदेश में लोकसभा का चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, यह कह पाना बहुत मुश्किल है।
-संजय मग्गू
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