पिछले दस साल से लगातार लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पराजित होने पर सत्तापक्ष द्वारा उपहासजनक टिप्पणियों के बाद कांग्रेस के लिए खुशी के क्षण तब आए, जब उसने हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में अपने बलबूते पर सरकार बना ली। लोकसभा चुनाव तो उसे एक तरह से संजीवनी बूटी प्रदान करने वाला साबित हुआ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित इंडिया गठबंधन के आपसी तालमेल ने कांग्रेस को 99 सीटों पर विजय दिलाई। कांग्रेस ने महाराष्ट्र में भी सबसे ज्यादा सीटें जीतकर एक कारनामे को अंजाम दिया है। कांग्रेस के लिए यह सब कुछ संतोष का विषय तो हो सकता है, लेकिन यदि लंबी यात्रा करनी है, तो उसे इतने पर ही संतोष करके नहीं बैठ जाना चाहिए। सबसे पहले तो उसे अपने संगठन पर ध्यान देना होगा।
भाजपा की सफलता का सबसे बड़ा कारण मजबूत संगठन, समर्पित कार्यकर्ता और समर्थकों का एक विशाल समुदाय। पीएम नरेंद्र मोदी के प्रति कार्यकर्ताओं और समर्थकों का भक्तिभाव ही भाजपा की सफलता का कारण बनता रहा है। कुछ-कुछ ऐसा ही कांग्रेस को भी करना होगा। उसे सबसे पहले उत्तर प्रदेश में एक मजबूत सांगठनिक ढांचा खड़ा करना होगा। नई पीढ़ी को मौका देना होगा। जनता के मुद्दे पर कांग्रेसियों को सड़क पर उतरना सीखना होगा, तभी लोगों का विश्वास कांग्रेस पर पैदा होगा। महाराष्ट्र में भी संगठन को मजबूत करना ही होगा, यदि आगे भी इस ट्रेंड को बनाए रखना है। इतना ही नहीं, सबसे जरूरी है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे प्रदेशों में पार्टी विरोधी तत्वों का कान पकड़कर बाहर किया जाए।
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लोकसभा चुनाव के दौरान जब जरूरत थी कि आगे बढ़कर नेतृत्व किया जाए, लोगों के बीच कांग्रेस आला कमान का संदेश ज्यादा से ज्यादा ले जाया जाए, तब इन प्रदेशों के आत्ममुग्ध पूर्व मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और पदाधिकारी बिना लड़े ही हथियार रख दिए। चार सौ पार नारे ने इन्हें इतना हतोत्साहित और पराजित कर दिया कि इन प्रदेशों के कांग्रेसी नेताओं ने प्रयास करना ही छोड़ दिया। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बुरी तरह पराजय का कारण आपसी गुटबाजी तो थी ही, इनमें से कुछ नेताओं की भितरघात भी पराजय का कारण बनी।
राजस्थान में भी अपेक्षा से कहीं ज्यादा सफलता इसलिए मिली क्योंकि वहां भाजपा में भी गुटबाजी थी। जब तक इन राज्यों में संगठन का क्रूर आपरेशन नहीं किया जाता, आत्ममुग्ध, गुटबाज, निष्क्रिय और बूढ़े हो चले नेताओं को चलता करके नए लोगों को मौका नहीं दिया जाता, तब तक हालात सुधरने वाले नहीं हैं। कांग्रेस आला कमान के लिए यह पल खुशियां मनाने का नहीं, बल्कि आगे बढ़कर अपनी कमियों को दूर करने और युवा पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने का है। भाजपा की नकल करके भाजपा को नहीं हराया जा सकता है। संगठन को मजबूत करके ही आगामी चुनावों में भाजपा को शिकस्त दी जा सकती है।
-संजय मग्गू
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