हरियाणा के तीन निर्दलीय विधायकों ने भाजपा सरकार से समर्थन वापस लेकर कम से कम तीन लोकसभा क्षेत्र भिवानी-महेंद्रगढ़, कुरुक्षेत्र और करनाल में भाजपा का गणित बिगाड़ दिया है। कांग्रेस के पक्ष में इन तीनों विधायकों के चले जाने से यह तो तय हो गया है कि इन तीनों विधायकों के समर्थक वोट अब कांग्रेस और आप उम्मीदवार के पक्ष में जाएगा। अब भाजपा को इन तीनों सीटों को जीतने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी होगी। इसके बाद भी विपरीत परिणाम की आशंका बनी ही रहेगी। इन तीन विधायकों द्वारा समर्थन वापसी को लेकर भेजी गई मेल भले ही आधिकारिक न मानी गई हो, भले ही अभी वे तकनीकी तौर पर भाजपा समर्थक माने जाते हों, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि वे अब मन से कांग्रेस के पक्ष में आ गए हैं। वैसे यह बात सही है कि हरियाणा में जातीय समीकरण ही सबसे अहम रहे हैं।
यही वजह है कि कांग्रेस को भाजपा की ही तरह जातीय समीकरण साधने के लिए अपने नौ उम्मीदवारों में दो जाट, दो एससी, दो पंजाबी, एक गुर्जर, एक यादव और एक ब्राह्मण को चुनावी मैदान में उतारना पड़ा। भाजपा ने भी दो जाट, दो एससी, दो ब्राह्मण, एक यादव, एक वैश्य, एक पंजाबी और एक गुर्जर को टिकट दिया है। आम आदमी पार्टी ने इंडिया गठबंधन की ओर से कुरुक्षेत्र में एक वैश्य को मैदान में उतारकर भाजपा को चुनौती दी है। सोशल इंजीनियरिंग में कांग्रेस ने भाजपा की ही तरह जातीय समीकरण साधने का पैंतरा आजमाया, तो भाजपा ने प्रदेश में बिना खर्ची, बिना पर्ची को चुनावी मुद्दा बनाकर कांग्रेस को घेरने का प्रयास करना शुरू कर दिया है।
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प्रदेश में कोई ऐसा मुद्दा नहीं दिखाई दे रहा है जिस पर मतदाताओं का मन टिक रहा हो। दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों की अपनी-अपनी उपलब्धियां हैं और एक दूसरे को घेरने के लिए अपने-अपने मुद्दे हैं। इसके बावजूद मतदाताओं की निगाह में कुछ मुद्दे हैं जिन पर राजनीतिक दलों को बात करनी चाहिए थी, लेकिन वे मुद्दे चुनावी परिदृश्य से परे हैं। राजस्थान से सटे महेंद्रगढ़-नारनौल, रेवाड़ी और दिल्ली-यूपी की सीमा से सटे गुरुग्राम, फरीदाबाद, पलवल में पानी का संकट कई दशकों से है। यहां की जनता की यह प्रमुख समस्या है, लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इन मुद्दों पर बात नहीं कर रहा है। करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला, यमुनानगर और पंचकूला जैसे इलाके हर साल बाढ़ की विभीषिका से जूझते हैं। इनकी समस्याओं को हल करने वाला कोई नहीं है। लेकिन राजनीतिक दल इस मामले में चुप हैं। हिसार, भिवानी, चरखीदादरी, फतेहाबाद और सिरसा के युवाओं का जीवन नशा खत्म करता जा रहा है, कोई सुनवाई नहीं हो रही है। इसके साथ-साथ बाकी इलाकों में भी कई समस्याएं हैं जो चुनावी मुद्दा हो सकते थे।
-संजय मग्गू
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