स्कूल बसों में सुरक्षा मानदंडों का पालन न करना, गाड़ियों की फिटनेस पर ध्यान न देना, गंभीर मामला है। एक तरह से यह उन बच्चों के जीवन के साथ किया जाने वाला खिलवाड़ है जिन्होंने अभी जीवन जीना शुरू ही किया है। कहा जाता है कि बच्चे राष्ट्र की धरोहर होते हैं। इन बच्चों में कौन महान वैज्ञानिक बनेगा, कौन महान खिलाड़ी बनेगा, कौन महान साहित्यकार बनेगा, कोई नहीं जानता। ऐसी स्थिति में यदि किसी बच्चे के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जाता है, तो इसका मतलब यही है कि हमने अपने देश के भावी महान खिलाड़ी, साहित्यकार, वैज्ञानिक, नेता से देश और दुनिया को वंचित कर दिया।
ईद के दिन कनीना में मरने वाले छह मासूम बच्चे शायद आगे चलकर अपने मां-बाप, शहर और देश का नाम रोशन करते, लेकिन स्कूल प्रिंसिपल और नशेड़ी ड्राइवर ने इन संभावनाओं पर हमेशा के लिए विराम लगा दिया। इन्हीं सब संभावनाओं को देखते हुए कहा जाता है कि बच्चे राष्ट्र की संपत्ति होते हैं क्योंकि जो अपने देश का नाम रोशन करता है, वह पूरे राष्ट्र का नायक होता है। अब प्रदेश सरकार ने भी इस मामले में कड़ा रुख अख्तियार करना शुरू कर दिया है। हालांकि निजी स्कूल से जुड़े संगठनों ने सरकारी सख्ती का विरोध किया है। उन्होंने कुछ जिलों में अपने स्कूलों को बंद रखने का भी ऐलान किया है। अफसोस की बात यह है कि इस मामले में अपनी गलती मानने और अफसोस जताने की जगह सरकारी कार्रवाई का विरोध करना उचित नहीं है।
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इस मामले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा, पंजाब और केंद्र शासित राज्य चंडीगढ़ को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है। महेंद्रगढ़ के कनीना में 11 अप्रैल को हुए हादसे को लेकर हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें स्कूली वाहनों की फिटनेस, ड्राइवरों की लापरवाही आदि को मुद्दा बनाया गया है। सच कहा जाए तो स्कूली वाहनों के मामले में स्कूल प्रबंधन से लेकर संबंधित सरकारी विभाग के अधिकारी-कर्मचारी जिम्मेदार हैं।
यह अधिकारी समय-समय पर इन वाहनों की जांच ही नहीं करते हैं। यदि कभी कभार जागरूकता या सरकार के दबाव में कार्रवाई भी की जाती है, तो कुछ ले-देकर मामले को रफा दफा कर दिया जाता है। महंगी फीस और वाहन शुल्क वसूलने वाला स्कूल प्रबंधन भी कंडम बसों, मिनी बसों या अन्य वाहनों में बच्चों को ठूंस-ठूंस कर भरते हैं और लाते-ले जाते हैं। यदि कोई अभिभावक इसका विरोध करता है, तो नाम काट देने, बीच रास्ते में बच्चों को उतार देने जैसी धमकियां देकर उनका मुंह बंदकर दिया जाता है। अधिकतर अभिभावक तो इसकी शिकायत भी नहीं करते हैं और स्कूल वालों की मनमानी को झेलते रहते हैं। इससे भी स्कूल प्रबंधन का मनोबल बढ़ा रहता है।
-संजय मग्गू
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