हरियाणा सरकार ने विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेकर आए डॉक्टरों के लिए दो से तीन साल की इंटर्नशिप अनिवार्य कर दी है। प्रदेश में इंटर्नशिप करने के बाद उन्हें डॉक्टर का दर्जा मिलेगा और वे यहां प्रैक्टिस करने के अधिकारी होंगे। भारत में एमबीबीएस डिग्री लेने वालों के लिए सिर्फ एक साल का इंटर्नशिप अनिवार्य है। विदेश से एमबीबीएस की डिग्री लेकर आने वाले छात्र-छात्राओं को भारत में प्रैक्टिस करने से पहले उन्हें परीक्षा पास करनी पड़ती है। नेशनल बोर्ड आॅफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल सर्विसेज की ओर से आयोजित फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन परीक्षा पास करना विदेश से डिग्री लेकर आए स्टूडेंट्स के लिए अनिवार्य है।
इस परीक्षा को पास करने के बाद ही उनका रजिस्ट्रेशन होता है। इसके बाद ही विदेश से डॉक्टरी पढ़े लोगों को दो से तीन साल तक इंटर्र्नशिप करनी होगी। पहले सरकारी नियम इंटर्नशिप का एक साल हुआ करता था। हरियाणा सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में एमबीबीएस की डिग्री हासिल करना बहुत महंगा है। हरियाणा में ही कई मेडिकल कॉलेजों की फीस पंद्रह से बीस लाख रुपये सालाना पड़ती है। अगर किसी छात्र-छात्रा को हरियाणा में एमबीबीएस करना है, तो उसे साठ-सत्तर लाख से एक करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इतनी महंगी शिक्षा तो सिर्फ अमीर घरों के बच्चे ही हासिल कर सकते हैं। प्रदेश के मेडिकल कालेजों में पढ़ने वाले बच्चे कई बार आंदोलन करके सरकार से फीस कम करने की गुहार लगा चुके हैं। ऐसी स्थिति में हरियाणा ही नहीं, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों के छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई करने के लिए चीन, जार्जिया, रूस, किर्गिस्तान, यूक्रेन और इस्राइल जैसे देशों में चले जाते हैं।
इन देशों में मेडिकल की पढ़ाई सस्ती है। तीन से दस-पंद्रह लाख रुपये में इन देशों में पूरी एमबीबीएस की पढ़ाई हो जाती है। यदि भारत में भी मेडिकल की पढ़ाई इन देशों की तरह सस्ती हो जाए, तो शायद भारतीय छात्रों को इन देशों में पढ़ने के लिए नहीं जाना पड़े। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विदेश में कुछ मेडिकल कालेजों की पढ़ाई अच्छी न हो। कुछ मेडिकल कालेज फर्जी भी हो सकते हैं, लेकिन जिस तरह हरियाणा में डॉक्टरों की कमी है, उससे निपटने के लिए प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई को सस्ती करनी होगी।
वैसे भी विश्व मानक के अनुसार देश के कुछ ही प्रांतों में डाक्टर उपलब्ध हैं जिनमें तमिलनाडु, दिल्ली, कर्नाटक, गोवा और पंजाब हैं। इन राज्यों में एक हजार व्यक्ति पर तीन से चार डॉक्टर उपलब्ध हैं, जबकि हरियाणा में 6037 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है। यही वजह है कि प्रदेश में चिकित्सा व्यवस्था चरमराई हुई है। अस्पताल हैं, लेकिन डॉक्टर उपलब्ध नहीं हैं।
-संजय मग्गू