सनातन धर्म में हर एकादशी व्रत का अपना एक अलग महत्व है लेकिन विशेषत: दो एकादशियों का महत्व ज्यादा माना गया है, ऐसा इसलिए क्योंकि इन दो एकादशियों का प्रभाव हमारे दैनिक जीवन पर पड़ता है। देवशयनी एकादशी और देव उठनी एकादशी जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है देव शयनी यानी जिस दिन भगवान सोते है यानी सृष्टि के पालनकर्ता श्री हरि विष्णु चीर निंद्रा में जाते है और देव उठान एकादशी पर वे उठते है।
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देव शयनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी तिथि से देव उठनी एकादशी यानी पूरे चार महीने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु योग निद्रा में चले जाते है। इस वक्त तक में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं होते है और चातुर्मास का आरम्भ होता है। इन दिनों साधु संन्यासी एक ही स्थान पर रहते हैं क्योंकि ऐसी पौराणिक मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान समस्त तीर्थ ब्रिज मंडल में आ जाते हैं इसलिए इस समय बृज की यात्रा करना बहुत ही पुण्य और फलदाई माना जाता है।
देव शयनी एकादशी की कहानी
शिव पुराण के अनुसार दैत्यों के राजा दंभ श्री हरि विष्णु के भक्त थे लेकिन उनके कई वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई तब उन्होंने असुर गुरु शुक्राचार्य से कृष्ण मंत्र प्राप्त किया और पुष्कर सरोवर में घोर तपस्या की भगवान विष्णु के वरदान से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम शंखचूड़ रखा गया शंखचुड ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से हमारा अमर होने का वरदान प्राप्त किया कि ब्रह्मा जी ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता है लेकिन विशेष परिस्थितियों में तुम्हें मृत्यु जरूर प्राप्त होगी, शंखचूड़ का वरदान प्राप्त करने के बाद अत्याचार बढ़ गया तब श्री हरि विष्णु भगवान शंकर के पास गए और भगवान शंकर ने शुखचूड का वध किया और इसी कारण भगवान शंकर की पूजा में शंख नहीं बजाया जाता है, जिस दिन शंखचूड़ का वध हुआ था उसी दिन आषाढ़ मास की एकादशी थी शंखचूड़ की मृत्यु के बाद भगवान श्री हरि विष्णु योग निद्रा में चले गए इसलिए…इस दिन को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता है और इसी दिन से सृष्टि के पालन पोषण का कार्य भगवान शंकर अपने ऊपर ले लेते हैं और चतुर्मास में ही श्रावण मास भी आता है, देवशयनी एकादशी के संबंध में एक और कथा प्रचलित है कहते हैं राजा बलि ने जब वामन अवतार विष्णु को अपना सर्वस्व दे दिया तो भगवान ने उन्हें पाताल लोक में पहुंचा दिया था और वरदान मांगने को भी कहा था तब राजा बलि ने उनसे अपना निवास पाताल लोक में करने के लिए कहा किंतु भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा कि ऐसा संभव नहीं है लेकिन हर साल कुछ समय के लिए चातुर्मास के समय वे उनके यहां रहने आएंगे और तब से ही भगवान विष्णु अपने भक्त राजा बलि को दिए गए वचन का पालन करने के लिए प्रति वर्ष चातुर्मास में पाताल लोक में जाते है।
देव शयनी एकादशी का महत्व
इस समय सूर्य चंद्रमा और प्रकृति का तेज कम हो जाता है, वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा कम होती है, शुभता की कमी होती है इसलिए शुभ कार्य करने से असफलता ही मिलती है। इस एकादशी का व्रत रखने से पापों का नाश होता है, दुर्घटनाओं का योग भी टल जाता है। मन शुद्ध होता है। रात्रि के समय श्री हरि विष्णु की पूजा करें, भगवान को पीले वस्त्र, पीले पुष्प अर्पित करें।
मुहूर्त : हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार एकादशी का व्रत 29 जून 2023 वार गुरुवार को रखा जाएगा, एकादशी तिथि की शुरुआत 29 जून को सुबह तीन बजकर 18 मिनट पर होगी, एकादशी तिथि का समापन 30 जून को रात दो बजकर 42 मिनट पर होगा। देव शयनी एकादशी के पारण का समय 30 जून को दोपहर में एक बजकर 48 मिनट से लेकर शाम चार बजकर 36 मिनट पर होगा।
देव शयनी एकादशी के दिन क्या न करें
एकादशी तिथि पर तुलसी में जल ना चढ़ाएं, भगवान को अर्पित करने के लिए एक दिन पहले ही तुलसी दल तोड़ लें, एकादशी तिथि के दिन चावल खाना निषेध माना गया है जो लोग उपवास नहीं रखतें हो उन्हें भी इस दिन चावल नहीं खाने चाहिए।