Masane Ki Holi (Varanasi) : काशी के मणिकर्णिका घाट पर गुरुवार को अद्भुत नजारा देखने को मिला। यहां जलती चिताओं के बीच “चिता भस्म” होली बड़े हर्षोल्लास के साथ खेली गई। लोग मसाने होली (Masane Ki Holi) खेलने के लिए मणिकर्णिका घाट स्थित श्मशान घाट पर एकत्र हुए। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ मणिकर्णिका श्मशान में अपने भक्तों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं।
काशी में ही खेली जाती है ऐसी होली
देशभर में रंग और गुलाल से होली खेली जाती है, लेकिन शिव की नगरी काशी में चिता की राख से भी होली खेली जाती है. ऐसी होली पूरी दुनिया में केवल काशी में ही मनाई जाती है। मान्यता है कि भगवान शंकर अपने इष्ट, भूत, प्रेत और पिशाच शक्तियों के साथ भस्म की होली खेलते हैं।
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विदेशी पर्यटकों ने भी लुत्फ उठाया
चिता भस्म की होली शुरू करने से पहले बाबा मसान नाथ की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. इसके बाद बाबा की आरती की जाती है और चिता की राख से होली की शुरुआत की जाती है, जिस दौरान पूरा श्मशान घाट ढोल-नगाड़ों और डमरू के साथ ‘हर-हर महादेव’ के जयकारों से गूंज उठता है. काशीवासियों के साथ-साथ विदेशी पर्यटकों ने भी इस महोत्सव का लुत्फ उठाया।
क्यों मनाई जाती है मसाने की होली?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मसान की होली की शुरुआत भगवान शिव ने की थी. माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शंकर माता पार्वती को काशी लाए थे। फिर उन्होंने अपने दोस्तों के साथ रंग और गुलाल से होली खेली. लेकिन वे श्मशान में रहने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, किन्नर आदि प्राणियों के साथ होली नहीं खेल सकते थे, इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद भोलेनाथ ने होली मनाई थी। श्मशान में रहने वाले भूतों के साथ खेली होली. तभी से काशी में मसान होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। चिता की राख से होली खेलने की यह परंपरा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मशहूर है।
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