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Editorial: परिवार की खुशहाली के लिए सास बहू के रिश्ते में मिठास जरूरीकैलाश शर्मा

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देश रोज़ाना: हमारा सामाजिक जीवन पूरी तरह संबंधों पर निर्भर होता है। जीवन में संबंध जितने महत्त्वपूर्ण होते हैं, उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है संबंधों को सफलतापूर्वक निभाना। कई बार संबंधों में कड़वापन आ जाता है, परंतु धैर्य और समझ के साथ हर संबंध को कुशलतापूर्वक निभाया जा सकता है। सास-बहू का रिश्ता व उनका आपसी सबंध सबसे ज्यादा कठिन माना जाने वाला होता है। पहले संयुक्त परिवार होते थे। एक ही चौखट के अंदर दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई आदि रहते थे। एक घर में कई सास और उनकी कई बहुएं रहती थीं। सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे और प्यार मोहब्बत से रहते थे।

आज मजबूरीवश एकल परिवार हो गए हैं। अब एक परिवार में एक सास अपनी दो-तीन बहुओं के साथ रहती है। आपसी तालमेल न होने व रोज रोज की खटपट के चलते कई जगह एक ही घर में सास बहू अलग अलग रहती हैं। ऐसा क्यों हो रहा है। इसका कारण सास बहू में आपस में मधुर सबंध व आपसी तालमेल ना होना और पुरानी व नई विचारधारा/रहन-सहन में भिन्नता है। घर की खुशहाली के लिए सास बहू में आपसी सामंजस्य व मधुर सबंध होना बहुत जरूरी है। यह आपसी समझ व व्यवहार में परिवर्तन लाने से हो सकता है। ससुराल में आने के बाद बहू से यह अपेक्षा की जाए कि वह हमारे अनुरूप ढल जाए तो एकदम ऐसा नहीं हो सकता। सास को प्यार से उसे समझाकर बताना चाहिए कि यह कार्य तुम्हें किस तरह करना चाहिए। यदि नहीं आता तो बता दें कि यह काम किस तरह होगा।

यह समझना बहुत जरूरी है कि जिस घर से बहू ब्याह कर आई, वहां के तौर तरीके अलग होंगे। साफ-सफाई से लेकर रसोई में खाना बनाने का तरीका अलग अलग होगा लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।
एक बात जिसकी वजह से सास बहू के सबंधों में कड़वाहट आती है वह यह है कि ससुराल वालों खासकर सास का बहू के मायके वालों के लिए गलत सलत कहना, उलाहना या ताना देना। एक बहू सब कुछ सहन कर सकती है, पर अपने मां-बाप व पीहर वालों की बुराई नहीं सुन सकती है। सास को अगर बहू या उसके पीहर वालों में कोई कमी दिखाई दे रही है तो उसे सोचना चाहिए कि उसने बहू को और उसके घर वालों व उनकी हालात को विवाह से पूर्व भी तो देखा भाला था। आपसी रजामंदी व सबकी राजी खुशी से तो विवाह हुआ था। तब बहू के पीहर वालों की बुराई करना किसी भी प्रकार से सही नहीं है।

एक बात और। बहू ससुराल आने पर इतनी जल्दी अपने पीहर का मोह नहीं छोड़ सकती है क्योंकि उसने जन्म से लेकर 22-25 साल पीहर में बिताए हैं। उसको पीहर की याद आनी स्वाभाविक है। अत: वह अपने मां-बाप, भाई-बहनों से मिलने पीहर जाने की कहे तो उसे भेज देना चाहिए। बच्चे हो जाने और उनके स्कूल जाने पर वैसे भी वह जल्दी पीहर नहीं जा सकती है। बहू के आते ही सारा काम बहू पर नहीं डालकर थोड़ा-थोड़ा काम करने दें। घर के सदस्य भी यथा योग्य प्यार व सम्मान के साथ कोई काम कहेंगे तो बहू भी खुशी से काम करेगी। बहू को हमेशा बेटी की तरह मानना, उसे प्यार से पुकारना बहू की सारी थकावट को दूर कर देता है। सास बहू के सबंध में कटुता आना अन्य रिश्तों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है।

घर की खुशहाली, संबंधों में मधुरता व जिंदगी का आनंद लेने के लिए सास बहू व घर के सभी सदस्यों को अपने व्यवहार में धैर्य संयम और सहनशीलता लानी चाहिए। गलती सभी से हो सकती है, यह सभी को मानना चाहिए। पॉजिटिव सोच रिश्तों के पोषण के लिए टॉनिक का काम करती है। एक खुशहाल परिवार के लिए घर में सास को ही सोच समझ के कदम उठाने होते हैं क्योंकि बहू घर में नई होती है। हर बेटे को अपने मां बाप का पूरा आदर व सम्मान करना चाहिए। उनके सुख दुख का ख्याल करना चाहिए। शादी हो जाने के बाद भी अपने माता पिता की खूब सेवा करनी चाहिए और कोई भी ऐसी बात नहीं करनी चाहिए जिससे उन्हें दुख हो। लेकिन बेटे को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अब उसकी जिंदगी में एक पत्नी भी आ गई है, उसे उसका भी पूरा ख्याल रखना चाहिए।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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