अयोध्या में बन रहा श्रीराम मंदिर कदाचित एक भवन मात्र नहीं है वरन यह भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का जीवंत स्रोत साबित हो रहा है। जिस प्रकार यूरोपीय जगत में 15वीं और 16वीं शताब्दी को रेनसान्स के रूप में देखा जाता है। उसी तरह पिछले एक दशक को भारतीय रेनसान्स भी कहा जा सकता है। जहां पहले आम भारतीय अपनी हिंदू पहचान को छिपाता था एवं अपनी हर कृति पर पाश्चात्य जगत से वैधता की मोहर चाहता था, वहीं आज हर भारतवासी गर्व से ओत-प्रोत है एवं अपनी सनातन पहचान शिरोधार्य किए हुए है। आज भारतवासी पाश्चात्य जगत से वैधता की मोहर नहीं चाहता वरन सम्पूर्ण विश्व आज भारत की तरफ टकटकी लगाए देख रहा है।
जिस प्रकार यूरोपियन रेनसॉन्स कालखंड में वहां के देशों ने कला, राजनीति, वास्तु, साहित्य, विज्ञान एवं अन्वेषण क्षेत्र में बहुत तरक्की की, उसी प्रकार भारत भी इस कालखंड में अपनी खोई पहचान पा रहा है एवं अनेक क्षेत्रों में नए आयाम प्राप्त कर रहा है। चन्द्रयान एवं आदित्य एल-1 इसी कालखंड की देन हैं। राम मंदिर पर आए सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले से लेकर मंदिर के भूमि पूजन एवं अब प्राण प्रतिष्ठा तक के समय में जिस प्रकार सम्पूर्ण भारतवर्ष राम-मय हो गया है, इसे अगर भारत का दूसरा भक्तिकाल कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
विगत वर्षों में राम के चरित्र का भी पुनर्जागरण हुआ है, जहां पहले जान-बूझ कर राम को मात्र दीन-हीन, वनवासी, भटकते हुए, रोते बिलखते हुए दिखाने का दुष्प्रयत्न हुआ, वहीं आज राम का चित्रण वीर-धीर, बलवान, एवं सामर्थ्यवान युगपुरुष के रूप में हो रहा है। वर्तमान में चल रहे इस राममय वातावरण में श्रीराम कोई आसमानी देवता नहीं, बल्कि जनमानस के अपने प्यारे राम हो गए हैं। लोग राम को अपने पिता, भाई, सखा एवं पुत्र के रूप में देख रहे हैं। ऐसा लग रहा है जैसे मानो कोई अपने परिवार का सदस्य ही अनेक वर्षों बाद घर आ लौट रहा हो।
जिस प्रकार नेपाल से आए भक्तगण मां सीता के लिए भेंट लाए और कहने लगे कि राम तो हमारे दामाद हैं। स्त्रियों ने कहा कि राम हमारे जीजा हैं। इससे सुंदर धर्म का उदाहरण पूरे विश्व में मिलना असंभव है। भेंटों के साथ जनकपुर निवासियों ने भात के गीत गाए। ऐसे मनोहारी दृश्य देखने केवल भारत में ही सम्भव हैं। सनातन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जहां भक्तों के अपने प्रभु से जीवंत पारिवारिक सम्बन्ध हैं। एक ओर अयोध्या में बन रहा श्री राम मंदिर नागर शैली वास्तुकला का खूबसूरत उदाहरण है, तो दूसरी तरफ लोकगीत, सोहर गान एवं लोक नृत्य कला संस्कृति का भी पुनरुत्थान हो रहा है।
अनेक लोकगीत आधुनिक धुनों पर गाए जा रहे हैं। लोगों के मन को खूब भा रहे हैं। इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप राम जी के मैसेजों से अटे पड़े हैं। सबको आने वाली 22 जनवरी का बेसब्री से इंतजार है। हर भारतवासी ऐसा महसूस कर रहा है, जैसा त्रेता युग में अवधवासियों ने महसूस किया होगा। इतना उत्साह, उमंग की सम्पूर्ण देश ही भाव विभोर हो जाए, यह सरकारों के बस की बात नहीं। यह तो स्वयं प्रभु इच्छा से ही सम्भव लगता है।
भारतीयता का पुनर्जागरण का एक और उदाहरण अभी हाल ही में देखने को मिला, जब मालदीव के कुछ मंत्रियों ने भारत को एक्स (ट्विटर) पर ट्रोल किया। भारत का सारा सोशल मीडिया जगत ऐसे उनके पीछे पड़ा कि वहाँ की सरकार को उन मंत्रियों की छुट्टी करनी पड़ी। ऐसा पुनर्जागरण तो शताब्दियों में एक बार देखने को मिलता है। हर भारतवासी ने उनके ट्वीट को पर्सनल कटाक्ष मान लिया। सम्पूर्ण भारतीय बिजनेस जगत एक हो गया और मालदीव का सामूहिक बहिष्कार होना शुरू हो गया। आज हर भारतीय अपने आप को ग्लोबल सिटीजन के रूप में देख रहा है। हर भारतवासी का स्वाभिमान चरम पर है। शायद यही है गुलामियों की बेड़ियों को तोड़ना एवं अमृत काल में प्रवेश करना।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-जगदीप सिंह मोर