Friday, November 8, 2024
27.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiसहज होना है, तो बच्चों के साथ खेलिए-कूदिए

सहज होना है, तो बच्चों के साथ खेलिए-कूदिए

Google News
Google News

- Advertisement -

आपने कभी बच्चों के साथ बच्चा बनकर देखा है! बच्चे बनकर देखिए। कितना सुकून मिलता है। मूड एकदम फ्रेश हो जाता है। चौबीस घंटे न तो कोई रचनात्मक रह सकता है, न ही काम कर सकते हैं। कुछ घंटे काम करने, सोचने विचारने के बाद ऐसा लगने लगता है कि अब बस, बहुत हो गया। अब दिमाग को भी रेस्ट देना चाहिए। जब ऐसा लगे, तो विचारों की खिड़कियां खोल दीजिए। कुछ ऐसा सोचिए, जो मूर्खतापूर्ण हो। कुछ ऐसा भी सोचिए जिससे आपको अपनी बेवकूफी पर हंसी आए। दिमाग को एकदम मुक्त होकर इधर-उधर भटकने दीजिए। एकदम बच्चों की तरह व्यवहार कीजिए। ऐसा करने पर आप पाएंगे कि अन्य उपायों की अपेक्षा इस तरह आप जल्दी और ज्यादा देर तक तरोताजा रहते हैं। आप जितना सहज रहेंगे, उतना ही सुखी रहेंगे। सहजता सीखनी होगी बच्चों से। चार-पांच साल से लेकर दस-बारह साल की उम्र तक के ज्यादातर बच्चे सहज रहते हैं। उनकी तरह अकेले में मुंह बनाइए, हलका-फुलका डांस कीजिए, न हो तो बच्चों के साथ खेलिए। जैसी वे हरकत करें, वैसी ही आप भी करें।

जब आप किसी बच्चे के साथ खेलते हैं, उससे बात करते हैं, उसको चिढ़ाते हैं, छेड़ते हैं तो आप अपनी समस्त चिंताओं, तनावों और बड़े होने के भाव को दरकिनार कर देते हैं। आप पूरी तरह सहज हो जाते हैं। वैसे तो लगभग हर बच्चा सहज होता है, लेकिन जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती जाती है, उसकी सहजता तिरोहित होती जाती है। कई तरह बनावटीपन उसमें आ जाता है। लालच, क्रोध, ईर्ष्या और छलकपट की भावनाएं उसे सहज नहीं रहने देती हैं। अब सवाल यह उठता है कि हम पचास-साठ की उम्र से पहले और उसके बाद सहज क्यों नहीं रह पाते हैं। हम कंफर्ट जोन से बाहर क्यों नहीं निकल पाते हैं? इसका जवाब शायद ही किसी के पास हो।

असल में हमारी जीवन शैली और आर्थिक स्थितियों ने हमें मजबूर कर दिया है कि हम लगातार काम करें। काम, काम और काम यानी अर्थ, अर्थ और अर्थ के चक्कर में हमने अपनी जिंदगी को घनचक्कर बना दिया है। इससे मुक्ति मिली, तो इस बाजारवादी व्यवस्था ने सोशल मीडिया नामक कोढ़ पैदा कर दिया है। जो समय हमें अपने आराम के लिए चाहिए, वह समय जिसमें हम जो चाहें, वह करें, उस समय के कुछ हिस्से को सोशल मीडिया को समर्पित कर दिया है।

नतीजा यह हुआ कि हमारे पास न पढ़ने का समय है, न बागवानी का समय है, न खेलने का समय है, न कसरत करने का समय है। यहां तक कि रोमांस करने के समय का भी अभाव है। यदि पार्टनर में दबाव डाला भी तो जैसे तैसे कर्तव्य निभाया और फिर लग गए रील्स देखने। नितांत निजी समय को हमने व्यर्थ गंवाना शुरू कर दिया, तो पता चला कि हमारी नींद का समय भी काफी घट गया है। नतीजा यह हुआ कि मेट्रो में, ट्रेन में या आफिस में तनिक भी मौका मिला, हम ऊंघने लगते हैं। काम में मन भी नहीं लगता है।

-संजय मग्गू

लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

पूरे प्रदेश की जनता की सेहत से खिलवाड़ कर रहे कुछ किसान

संजय मग्गूप्रदूषण सबके लिए हानिकारक है, यह बात लगभग हर वह आदमी जानता है, जो बालिग हो चुका है। अब तो नाबालिग बच्चे भी...

जॉन एलिया: एक शायर की दर्द भरी कहानी

अदब और मोहब्बत का गहरा रिश्ता अदब का ख़्याल मन में आए, मोहब्बत का ख़्याल मन में आए, हिज्र के दर्द की चुभन सुनाई दे,...

पैदल चलने के फायदे: सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए लाभकारी

पैदल चलना, यानी साइकिल चलाना, न केवल एक मज़ेदार गतिविधि है, बल्कि यह सेहत और पर्यावरण के लिए भी बेहद फ़ायदेमंद है। पैदल चलने...

Recent Comments