संजय मग्गू
समाज में जब रिश्तों को निर्धारित किया गया, तो समाज के ही प्रबुद्ध लोगों ने सभी तरह के रिश्तों की मर्यादाएं भी तय कर दीं। मां, बेटा, भाई, बहन, दादा, पौत्र-पौत्री जैसे तमाम रिश्तों की मर्यादाएं हैं। समाज ने यह भी तय किया कि व्यक्ति किससे शिष्ट हास-परिहास कर सकता है और कौन से रिश्ते पवित्र होगे। लेकिन आज मर्यादाएं टूट रही हैं। रिश्तों को कलंकित किया जा रहा है। महिलाओं का यौन शोषण अब सबसे ज्यादा निकट के रिश्तेदार और घर के ही लोग कर रहे हैं। पानीपत के किला थाना क्षेत्र के एक गांव में दादा के भाई ने तेरह साल की नाबालिग पौत्री को अपनी हवस का शिकार बनाया। कई बार दुष्कर्म किया। जब पीड़िता ने अपने साथ हो रहे दुष्कर्म का विरोध किया, तो उसके पिता के शरीर में भूत छोड़ने का भय दिखाया। बेचारी नाबालिग लड़की अपने पिता को खतरे में पड़ने की आशंका से अपने दादा के भाई का अत्याचार सहती रही। इस बात का खुलासा भी नहीं होता, यदि बच्ची का मासिक बंद नहीं हो जाता। मां ने जब प्रेगनेंसी टेस्ट किया, तो पता चला कि वह बच्ची तीन माह की गर्भवती है। यह कोई पहला मामला नहीं है। ऐसे मामले अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। आए दिन पता चलता है कि भाई ने नाबालिग बहन का यौन शोषण किया, तो कहीं चाचा ने अपनी भतीजी का। महिलाएं और बच्चियां सबसे ज्यादा अपने ही घर में असुरक्षित महसूस की जा रही हैं। निकट संबंधी ही बच्चियों और महिलाओं का यौन शोषण कर रहे हैं, उनके साथ दुष्कर्म कर रहे हैं। एनसीआरबी की रिपोर्ट की मानें तो हरियाणा में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में कमी आई है, लेकिन वह संतोषजनक नहीं कहे जा सकते हैं। नायब सिंह सैनी सरकार अपराध रोकने की हरसंभव कोशिश कर रही है। लेकिन सिर्फ सरकारी प्रयास से ऐसे अपराध रुकने वाले नहीं हैं। जब तक समाज ऐसे घृणित अपराध रोकने के लिए आगे नहीं आएगा। दरअसल, जब से एकल परिवार की परंपरा ने जोर पकड़ा है, तब से ऐसे मामलों में तेजी आई है। तीन-चार दशक पहले तक हरियाणा की शहरी और ग्रामीण आबादी संयुक्त परिवार में रहती थी। संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाची, ताया-ताई और उनके बच्चे आपस में मिल जुलकर रहते थे। उनमें एक अपनत्व का भाव होता था। चचेरे, ममेरे, फुफेरे और मौसेरे भाई बहन एक रिश्ते में बंधे होते थे। वे आपस में भाई-बहन की तरह आपस में व्यवहार करते थे। सभी बच्चों पर पूरे परिवार की निगाह रहती थी। ऐसे में उन्हें कोई बरगला नहीं पाता था। यदि कोई ऐसा करता भी था तो वह सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया जाता था। ऐसे में लोग इस तरह का घृणित कार्य करने से डरते थे। लेकिन एकल परिवार का चलन होने से सामाजिक दबाव भी कम हो गया है।
घर में ही सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं बच्चियां और महिलाएं
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