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मनुष्यों का पक्षियों से रिश्ता बहुत पुराना, पक्षियों को बचाना होगा

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संजय मग्गू
मनुष्यों का पक्षियों से रिश्ता बहुत पुराना है। यह रिश्ता अनादिकाल से चला आ रहा है। घर के आंगन, छत की मुंडेर, खेत-खलिहानों और आसपास लगे पेड़ों पर हजारों  पक्षियों का बसेरा हुआ करता था। इन पक्षियों से हमारी आत्मीयता थी। घर की महिलाएं अपने आंगन में अनाज के दाने बिखेर कर उनके खाने और किसी टूटे-फूटे बरतन में पानी भरकर प्यास बुझाने का प्रबंध कर दिया करती थीं। खेत-खलिहान में किसान भी थोड़ा बहुत अनाज जानबूझकर छोड़ दिया करते थे, ताकि पक्षियों के भोजन का प्रबंध हो जाए। बाकी जो कमी रह जाती थी, वह कीड़े-मकोड़े खाकर पक्षी अपनी क्षुधा शांत कर लिया करते थे। गौरेया, चील, कौवा, तोता जैसे न जाने कितनी प्रजातियों के पक्षी हमारे आंगन में अपने सुरीले कंठ से गाते, नाचते और दाना चुगते नजर आते थे। लेकिन अब हमसे इन पक्षियों का नाता बिल्कुल टूट रहा है। गौरैया, गिद्ध, उल्लू, कौआ, चील, मैना, बुलबुल, कोयल की संख्या लगातार घट रही है। यही वजह है कि इनमें से पक्षियों की न जाने कितनी प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं और न जाने कितनी विलुप्तता के कगार पर हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जलवायु परिवर्तन है। बदलते पर्यावरण ने पक्षियों ही नहीं, पशुओं के लिए भी एक संकट खड़ाकर दिया है। मौसमों में आए बदलाव ने पक्षियों के सामने जीवन-मरण का प्रश्न खड़ा कर दिया है। इसके साथ ही साथ लगातार बढ़ते शहरीकरण और प्रदूषण ने कई पक्षियों को विलुप्त होने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। कहा तो यह जा रहा है कि हरियाणा और अन्य प्रदेशों से तोता, बत्तख, यात्री कबूतर, पिनेटेड ग्रूज, ग्रेट आॅक जैसे कई पक्षी विलुप्त हो चुके हैं। हरियाणा में लगातार बढ़ते प्रदूषण और तापमान की वजह से पक्षियों की संख्या लगातार घटती जा रही है। प्रदेश में पेड़-पौधों की कटाई ने भी पक्षियों के जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालांकि अब लगभग सभी जिलों में वन विभाग ने पक्षियों का सर्वे करना शुरू कर दिया है, लेकिन सिर्फ इतना ही पर्याप्त नहीं है। पशु-पक्षियों का मानव जीवन में बहुत अधिक महत्व है, हमें इसको बराबर ध्यान रखना होगा। अरावली जंगल में एक हजार से अधिक पक्षियों की प्रजाति होने के अनुमान है। इनमें से कितनी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं, सर्वे के बाद ही इसका पता चलेगा। इस सर्वे की रिपोर्ट कब आएगी, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन सामाजिक स्तर पर इसके लिए एक अभियान शुरू करने की जरूरत है। पेड़-पौधों को बचाकर, प्रदूषण को घटाकर हम पक्षियों को घटने से रोक सकते हैं। उन्हें अपने जीवन निर्वाह के लिए प्राकृतिक वातावरण चाहिए। प्रकृति को सुरक्षित तभी रखा जा सकता है, जब पशु-पक्षी सुरक्षित रहेंगे।

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