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संसदीय परंपराओं की रक्षा सत्तापक्ष कर पाया, न विपक्ष

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इस बार का मानसून सत्र भी पिछले कई मानसून सत्रों की तरह हंगामे, बायकॉट और स्थगन के ही माहौल में बीत गया। आखिरी दिन भी कामकाज मामूली ही हुआ। पिछले कुछ सालों से संसद सत्र के दौरान बायकॉट, स्थगन और हंगामा एक अघोषित और अलिखित परंपरा की तरह स्वीकार कर लिया गया है। इस सत्र की शुरुआत होने से पहले ही मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए बर्बर और शर्मसार कर देने वाले वीडियो के वायरल हो जाने के बाद से ही लगने लगा था कि इस बार का मानसून सत्र हंगामेदार होगा, लेकिन जिस तरह मानसून सत्र चला, उससे समृद्ध परंपरा का परिपालन कहीं भी होता नहीं दिखाई दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में मणिपुर पर बोलने को मजबूर करने के लिए ही विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया। वैसे सदन में इससे पहले भी यह जानते हुए भी कि अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा, अविश्वास प्रस्ताव  लाए गए हैं।

संसदीय इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव भारत-चीन युद्ध के बाद लाया गया था। तब नेहरू मंत्रिमंडल को प्रचंड बहुमत हासिल था, इसके बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाकर नेहरू सरकार की तीखी आलोचना की गई थी। संसद में अविश्वास प्रस्ताव का पास होना या गिर जाना महत्वपूर्ण नहीं होता है, उस प्रस्ताव को लाने का मकसद महत्वपूर्ण होता है। इस बार भी अविश्वास प्रस्ताव का मकसद सदन में प्रधानमंत्री को मणिपुर मामले पर बोलने और उस पर चर्चा करना था। लेकिन सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों इस मकसद पर खरे उतरते दिखाई नहीं दिए। किसके भाषण का जनता पर कितना और कैसा प्रभाव पड़ा, यह भी महत्वपूर्ण नहीं होता है।

महत्वपूर्ण यह बात होती है कि सदन में संसदीय परंपराओं का कितना पालन हुआ और जनप्रतिनिधि जनपक्षीय मुद्दे उठाने में कितने सफल रहे। पूरे सत्र के दौरान जनता से जुड़े मुद्दे नदारद ही रहे। पूरे सत्र के दौरान दोनों पक्ष एक दूसरे पर व्यक्तिगत हमले ही करते रहे। राजनीतिक दलों के इतिहास खंगाले गए। बाद में जब राहुल गांधी की सांसदी बहाल हुई, तो पूरा सत्र राहुल बनाम मोदी पर ही आकर केंद्रित हो गया। विपक्ष ने शुरुआत में अपना पूरा फोकस मणिपुर मुद्दे पर ही रखा, लेकिन बाद में प्रधानमंत्री मोदी की देशभक्ति और राष्ट्रद्रोही होने पर केंद्रित हो गया। सत्तापक्ष भी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाया। सत्तापक्ष के सांसदों ने संसद में मोदी-मोदी नारे के नारे लगाकर व्यक्तिवादी होने का परिचय दिया।

बाद में तो राहुल गांधी के फ्लाइंग किस तक को मुद्दा बना दिया गया और लोकसभा अध्यक्ष के पास शिकायत तक दर्ज कराई गई। जबकि उसी संसद में कैसरगंज के सांसद बृजभूषण शरण सिंह की मौजूदगी पर किसी को आपत्ति नहीं हुई जिन पर छह महिला पहलवानों ने यौन शोषण के आरोप तक लगाए हैं। जिसके लिए महीनों तक महिला पहलवानों ने दिल्ली में प्रदर्शन तक किए हैं। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों संसदीय इतिहास की स्वस्थ परंपराओं में वृद्धि इस बार भी नहीं कर सके।

संजय मग्गू

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