नई दिल्ली। किसान आंदोलन में मुख्य मुद्दा MSP का है लेकिन उसी पर व्यापक स्तर पर लगातार असहमति कायम है। पूरे मामले पर किसानी विशेषज्ञों, सरकारी तथ्यों और किसान नेताओं के तथ्यों का विश्लेषण करें तो एक ऐसा चौंकाने वाला तथ्य सामने आता है जो पूरे माहौल दरकिनार है। भूजल दोहन को खत्म करने के लिए बीते करीब एक दशक से सरकार का फोकस धान का रकबा कम करते हुए धान-गेहूं वाले फसली चक्र को तोड़कर मक्का, कपास, सूरजमुखी और मूंग जैसी फसलों की खेती को बढ़ावा देना है लेकिन पेंच वहीं पर फंसा है। विविधता वाले वैकल्पिक फसलों को उगाने के बाद किसानों को गेहूं-धान सरीखी अपेक्षित कीमत नहीं मिल पा रही और सरकारी MSP भी उस पर किसानों के मुताबिक कम ही है।
इसी पेंच वाले मसले को किसान आंदोलन में MSP के शोर में दबा दिया जा रहा है जिससे कई किसान नेता आहत हैं कि दोनों पक्षों में से कोई भी इस असल मुद्दे का हल करने पर फोकस नहीं कर रहा। किसान नेता सुखदेव सिंह कोकरीकलां का कहना है कि हरियाणा और पंजाब सरकारें अधिक पानी की खपत करने वाली धान की फसल से विविधता लाने और धान-गेहूं चक्र को तोड़ने के लिए मक्का, कपास, सूरजमुखी और मूंग जैसी फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर रही हैं। लेकिन इन फसलों की कीमतें सही न मिलने के कारण सरकारों का फसल विविधीकरण योजनाएं सफल नहीं हो पा रही हैं। सरकार के झांसे में आकर हम फसलें तो उगा लेते हैं लेकिन काफी कम दामों पर बाजार में बिकती है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि सूरजमुखी के बीज की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर की जाए, जो 6,400 रुपए प्रति क्विंटल है। किसानों को खुले बाजार में 4,000 से लेकर 5,000 रुपए प्रति क्विंटल कीमत ही मिली। हमारी फसलें MSP से भी कम भाव पर बिकी। पंजाब में मक्के की कीमतें लगभग 1,000 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गई हैं। 2022-23 के लिए घोषित MSP 1,962 रुपये प्रति क्विंटल से काफी कम है। हरियाणा में भी कीमतें MSP से 50 फीसदी नीचे गिर गई हैं और किसानों को भारी नुकसान हुआ। इसी तरह मूंग के लिए 7,755 रुपये प्रति क्विंटल MSP की घोषणा की गई, लेकिन किसानों को प्रति क्विंटल लगभग 6,000 रुपए ही मिल रहे थे।
कोकरीकलां किसानों की व्यथा बताते हुए कहते हैं कि दरअसल, दूसरी फसलों की कम कीमत मिलना एक बड़ा कारण है, जिसके चलते किसान गेहूं-धान से अपना ध्यान नहीं हटाता क्योंकि इनमें बेहतर और सुनिश्चित रिटर्न मिलता है। हर साल सरकार विभिन्न फसलों के लिए MSP की घोषणा करती है, लेकिन प्रभावी रूप से धान व गेहूं और कभी-कभी सोयाबीन जैसी केवल दो या तीन फसलें ही सरकार द्वारा घोषित कीमतों पर खरीदी जाती हैं। बाकी निजी व्यापारियों द्वारा खरीदा जाता है, जिनके पास MSP या उससे ऊपर खरीदने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं है। इसलिए हम कानून व गारंटी मांग रहे हैं। चावल की बजाय 100,000 हेक्टेयर से मक्की खरीदने के लिए पंजाब में 89.35 करोड़ रुपये और हरियाणा में 24.56 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च आएगा।
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अब इस बारे में सरकारी आंकड़े भी रोचक हैं। नाबार्ड की ओर से देश के 29 राज्यों में कराए गए एक सर्वे में सामने आया था कि पंजाब में किसानों के प्रति परिवार की मासिक आय 23,133 रुपये है। वहीं देश में यूपी में अन्नदाता सबसे गरीब है जहां प्रति परिवार मासिक आय मात्र 6668 रुपये है। धान व गेहूं की खरीद MSP पर होने के कारण पूरे देश में पंजाब के किसान आज भी अमीर हैं। पंजाब में मुख्य फसल गेहूं व धान ही है, जिसमें से सरकारी एजेंसियां पहले से 97 फीसदी धान MSP पर खरीद रही हैं जबकि 80 फीसदी गेहूं की खरीद भी सरकार द्वारा की जा रही है। पंजाब में उगने वाली उत्तम किस्म की बासमती मुंह मांगे दाम पर किसान बेच रहे हैं, जिसको निर्यात किया जा रहा है। विशेषज्ञों का तर्क है कि पंजाब के किसान तो पहले से MSP का फायदा ले रहे हैं। इसी कारण पूरे देश में मेघालय के बाद पंजाब के किसान अमीर हैं।
94 फीसदी अन्नदाता को नहीं मिलती MSP
सरकारी रिपोर्ट्स की मानें तो भारत में 6 फीसदी को MSP मिलता है, 94 को नहीं मिलता और उन 6 फीसदी किसानों में ज्यादातर हरियाणा और पंजाब के किसान हैं। पंजाब में उपजाए गए लगभग 97 प्रतिशत धान और लगभग 75-80 फीसदी गेहूं को सरकार द्वारा खरीदा जाता है। वहीं दूसरी तरफ यूपी में करीब 7 फीसदी और बिहार में 1 प्रतिशत से कम धान और गेहूं की सरकारी खरीद होती है। राजस्थान सरकार द्वारा 4 फीसदी के आसपास गेहूं खरीदा जाता है। आंकड़ों के मुताबिक, 344.86 लाख मीट्रिक टन धान के बदले केंद्र सरकार ने अलग अलग राज्यों के लगभग 35 लाख किसानों को 65.111 करोड़ रुपये का भुगतान किया। इस 35 लाख किसानों में से पंजाब का योगदान 59 प्रतिशत था।
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