कलाकार रंजीत कुमार जो मूलत: बिहार से हैं और वर्तमान में दिल्ली में सृजनशील हैं की कृतियों में विस्थापन और उसका दर्द स्पष्टत: झलक उठा है। विस्थापन का दर्द कृतियों में पूरी फोर्स के साथ उपस्थित है। तन घर से दूर भले ही होता है पर मन को घर से दूर होने में वर्षों लग जाते हैं। शरीर के नीचे शोर मचाते भोंपो के माध्यम से कलाकार अपनी बात और भी जोर के साथ कह पाने में सफल हुआ है। रेखांकन के माध्यम से पूरे परिवेश को एक झटके में दर्शकों के सामने रख देने वाले कलाकार रंजीत कुमार जिंक प्लेट पर इचिंग किए गए कार्यों से भी यही बात दोहराते नजर आये हैं।
ललित कला अकादमी में सात कलाकारों की, सात दिनों की और हॉल नंबर सात में चल रही प्रदर्शनी चर्चा का विषय बनी हुई है। भीड़ देखकर मन बार-बार प्रसन्न हो उठता है। अबोजो जो एक इटैलियन शब्द है और जिसका संबंध स्केचिंग, कला कर्म आदि से है, नाम के अनुरूप कृतियां देखने को यहां मिल रही हैं। इस प्रदर्शनी में बिहार, झारखंड और नई दिल्ली सहित और जगहों से भी सात कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित है।
बिहार के ही कलाकार कौशलेश कुमार जो वर्तमान में गुवाहाटी में कार्यरत हैं, की कला में सक्रियता काबिल-ए-तारिफ है साथ ही उनके अपने शैली में किए गए कार्यों को भी तारीफ का पूरा हक है। समय के साथ मनुष्य में आये परिवर्तन को देखने हेतु उनकी कृतियों को देखना होगा। मासूमियत से मशीन के तरफ बढ़ते लोग, कोमलता से कठोरता के तरफ बढ़ते लोग, लोग जिनके भीतर शांति के बदले उथल-पुथल ने जगह बना रखी है। अमूर्तन में ही सही इनके कृतियों में है। इनके कृतियों में कोमल रंगों की अधिकता है। कहा जाता है कि अच्छाई के साथ ही बुराई भी यात्रा पर ही होती है मात्रा कम या ज्यादा भले हो।
अलीगढ़ की कलाकार पूजा राज के कृतियों में भी दर्द है, जीवन के उठापटक से प्रभावित लोगों को इन सभी से बचते हुए एकांत की तलाश का दर्द जो अब धीरे-धीरे नोहर सा हो गया है, जहां हम बहुत कुछ प्राप्त करने के चक्कर में बहुत कुछ खो दिए हैं का दर्द है। सॉलीट्यूड सिरीज पर इनके काम यहां प्रदर्शित हैं। साथ ही जड़ों से जुड़ाव और पहचान की बात भी इनकी कृतियों में है। रूट्स नामक इंस्टालेशन में जड़, बांस, मुखौटों और धागों के माध्यम से ये एक ऐसे दुनिया से दर्शकों को जोड़ने का प्रयास करती हैं जो हमारे समक्ष होता तो है पर हम अनजान ही रहते हैं।
पूजा राज अपने आस-पास के जकड़न एवं परिवेशों को अभिनय के माध्यम से अभिव्यक्त करने में भी माहिर हैं। इनका वर्तमान निवास दिल्ली में हैं। रांची के कलाकार संजीत मिंज जल रंग का काफी बढ़िया प्रयोग करते हैं। टेक्सचर से खेलती इनकी कृतियां मनोरम प्रतीत होती हैं। गांव, घर, घाट इनके विषय हैं और जो सबसे प्रिय हैं इन्हें, वो हैं छोटे-छोटे चौकोर पैचेज जिसका प्रयोग तो अधिक हुआ है पर कृतियां बोझिल नहीं बनी बल्कि सुंदर और ग्राही बन पड़ी हैं।
जीवन में उम्मीद और उम्मीदों से बंधी तमाम आकांक्षाओं की यात्रा है कलाकार सीमा तोमर की कृतियों में। सीमा तोमर जो नई दिल्ली के गांवों से संबंध रखती हैं, की कृतियों में स्त्री है, स्त्री के माध्यम से उत्पत्ति और महिलाओं का संघर्ष भी है। काल्पनिक आकृतियों के माध्यम से मछली, महिला और पैरों के समूह को भी दिखाया गया है जहां सृजन, संघर्ष और इन सभी के बीच निरंतर चली जा रही यात्रा भी है।
पैरों का अधिकतम प्रयोग आपकी पहचान बन गई है। आत्मचिंतन शीर्षक से कृतियों को रचने वाले कलाकार नवल किशोर समय और समय के साथ जूझते मानव को यथार्थवादी पद्धति में अंकित करते हुए खुद से खुद के संवाद को दिखाते हैं। एक्रेलिक और मिश्रित माध्यम के जरिए कैनवास पर बड़े काम करते हुए नवल किशोर लोगों को समय के महत्व और दर्द को बयां करते हुए गहन रंगों का प्रयोग करते हैं। घड़ी, मुर्गा आदि का प्रयोग संकेतों के माध्यम से पूरी बात बयां करता है जबकि वहीं दूसरे कलाकार राजेंदर कुमार तटावत भी यथार्थवादी चित्रों के साथ ही दर्शकों के बीच है। इनके विषयवस्तु में एक दूसरे के प्रति आकर्षण ही प्रमुख है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-पंकज तिवारी