व्यक्ति कितना भी गुणी हो, अगर उसका आचरण ठीक नहीं है, तो लोग उसका सम्मान नहीं करते हैं। नैतिकता और सदाचरण ही किसी व्यक्ति को सम्मान दिलाता है और उससे विपरीत होने पर अपमान का भागीदार भी बनाता है। समाज में यदि प्रतिष्ठा पानी है, तो सबसे पहले हमें अपना आचरण सुधारना होगा।
सबसे प्यार से बात करनी होगी, लोगों के प्रति दयाभाव रखना होगा। यदि हम ऐसा करने से चूक जाते हैं, तो लोग हेयदृष्टि से देखते हैं। कभी-कभी अपमान भी कर देते हैं। एक समय की बात है। एक राज्य में देव मित्र नाम का राजपुरोहित था। उसका पूरे राज्य में बड़ा सम्मान था। राजा और प्रजा से लेकर अधिकारी तक उनका बहुत सम्मान करते थे। एक दिन उसके मन में आया कि लोग मुझे इतना सम्मान आखिर क्यों देते हैं? इसका पता लगाया जाए।
एक दिन देवमित्र ने राजकोष से एक स्वर्ण मुद्रा चुपके से उठा ली। वहां मौजूद खजाने के अधिकारी ने देख लिया, लेकिन चुप रहा। दूसरे दिन राजपुरोहित देवमित्र ने दो स्वर्ण मुद्राएं निकाल ली। अधिकारी ने देखकर भी अनदेखा कर दिया। तीसरे दिन जब देवमित्र ने एक मुट्ठी स्वर्ण मुद्राएं उठाकर जेब में रखी, तो उस अधिकारी ने उन्हें पकड़ लिया। उसने वहां मौजूद सैनिकों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।
दूसरे दिन पुरोहित को राजा के सामने उपस्थित किया गया। राजा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राजपुरोहित को तीन महीने तक कारागार में रखा जाए। तब राजपुरोहित देवमित्र ने सारी बात बताते हुए कहा कि अब मैं समझ गया हूं कि सम्मान नैतिकता और अच्छे आचरण का होता है। इस मामले में ज्ञान उतना महत्व नहीं रखता है। यदि व्यक्ति सदाचरण करना छोड़ दे, तो वह एक मिट्टी के ढेले की तरह रह जाता है।
-अशोक मिश्र