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कांवड़ यात्रा के दौरान आम यातायात पर भी ध्यान दें

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शिवरात्रि का पर्व संपन्न हो गया। कावंड़ यात्रा अपनी मंजिल पर पंहुच कर पूर्ण हो गई। सड़कों   से गुजरते भोले के भक्तों  के काफिले अपनी मंजिल पर पहुंचकर अगले छह माह के लिए रुक गए। जाड़ों में दोबारा शिवरात्रि पड़ेगी, तब ये यात्रा फिर शुरू होगी। फिर कांवड़ियों के काफिले सड़कों पर होंगे। ज्योतिर्लिंग वाले सभी प्रदेशों में इस यात्रा को देखते हुए व्यापक व्यवस्था की जाती है। अन्य शिवालयों पर भी भारी तादाद में श्रद्धालु जल चढ़ाते हैं। कई बार किसी कांवड़ से किसी के टकराने  या कावड़िये के दुर्घटनाग्रस्त होने पर कावड़िये प्राय: हंगामा करते हैं। कई  जगह तोड़−फोड़ आगजनी आदि पर उतर आते हैं, इसलिए प्रशासन पहले से सचेत रहता  है। केंद्र में भाजपा सरकार आने और कई प्रदेशों में भाजपा की सरकार होने के बाद से इस कांवड़ यात्रा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। इनके लिए आने −जाने के मार्ग निर्धारित होने लगे।

इन कांवड़ियों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। अधिकतर महत्वपूर्ण मार्ग इनके लिए आरक्षित किए जाने के कारण इन मार्ग के वाहन दूसरे मार्ग पर भेजे जाने लगे।  इससे आम लोगों को परेशानी होने लगी। तीन घंटे का रास्ता  छह से सात घंटे में पूरा होने लगा। वाहनों को 60 से 70 किमी ज्यादा चलना पड़ा। वाहनों के ज्यादा चलने के  तेल ज्यादा  लगा। तेल का  ज्यादा लगना राष्ट्रीय नुकसान है और व्यक्ति की समय की बरबादी।  व्यवस्था  ऐसी बनाई जाए कि कांवड़ यात्रा भी निर्विघ्न रूप से पूरी हो और दूसरे वाहन  और यात्रियों को कोई परेशानी न हो। नियमित यातायात इस यात्रा के दौरान सुगमता से चलता रहे।

शिवरात्रि भगवान शिव का पर्व है। यह पर्व पूरे भारत वर्ष में मनाया जाता  है। करोड़ों की संख्या में शिव के उपासक  पवित्र नदियों के स्थलों से उनका   जल कांवड़ में लेकर आते और शिवालयों पर जाकर चढ़ाते हैं। ज्योतिर्लिंग पर तो शिवरात्रि पर जल चढ़ाने के साथ उत्तर भारत क्या  पूरे देश में यह पर्व श्रद्धा के साथ  मनाया जाता है। कांवड़ यात्रा कई-दिन चलती है। सड़कों पर कावड़ियों का रेला ही रेला  दिखाई  देता है। श्रद्धालु कावंड़ियों को ज्यादा से ज्यादा सुविधा उपलब्ध कराकर पुण्य  लाभ पाने के लिए तत्पर रहते हैं। ये कांवड़ियों  मार्ग पर उनके खाने-पीने की ठहरने आदि  की निशुल्क व्यवस्था  करते हैं।

भंडारे लगाते  हैं। यात्रा पर निकलने से पहले कावंड़िये तैयारी करते हैं। कांवड़, उसके सजाने  आदि और अपनी यात्रा का सामान खरीदते हैं। अपने साथ चलने वाले वाहन  किराये पर लेते  हैं। इन पर किराये का म्युजिक सिस्टम लगाते  हैं।कांवड़िये की अलग तरह की भगवा रंग की टीशर्ट  चल पड़ी। इसका ही अब लाखों रुपये का कारोबार बन गया। कांवड़ यात्रा से हजारों लोगों का रोजगार चलता है। इस यात्रा पर खरबों रुपये का बिजनेस होता  है। ये यात्रा  होनी चाहिए। इस यात्रा की व्यवस्थाएं भी भव्य होनी चाहिए। कांवड़ियों की व्यापक सुरक्षा और बढ़िया मार्ग की व्यवस्था होनी चाहिए। इनकी सुविधा के लिए  कोई कसर उठकर नहीं रखी जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस व्यवस्था पर स्वंय नजर रखते हैं। वे हेलिकाप्टर से कांवड़ियों पर फूलों की वर्षा करते हैं।

कावंड़ियों की सुविधा के साथ  आम आदमी की सुविधा  का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।  व्यवस्था की जानी चाहिए कि कांवड़ यात्रा के दौरान आम यातायात प्रभावित न हो। केंद्र एक्सप्रेस वे बना  रहा है ताकि यातायात के किसी वाहन को परेशानी न हो। इसके लिए  कांवड़  यात्रा वाले  प्रदेश की सरकारों  का केंद्र के साथ मिलबैठ कर प्लान करना  चाहिए। कांवड़ यात्रा वाले मार्ग पहले ही इस तरह बनाए जाएं कि उसकी साइड से आम यातायात सुगमता से अनवरत चलता रहे। कांवड़  यात्रा वाले मार्ग  पर कांवड़ यात्रियों के लिए पहले से ही दो अलग लेन बनाकर रखी जा  सकती हैं।

यात्रा के समय में  इन पर कांवड़िए और उनके वाहन चलें। बाद में ये लेन आम ट्रैफिक के लिए प्रयोग हों। कांवड़ यात्रा वाले मार्ग  पर कांवड़ यात्रियों  के आराम, रुकने के स्थान पहले से चिन्हित हों। स्थान ऐसे हों कि यहीं कांवड़ शिविर भी  लग सकें। 1990 के आसपास कांवड  यात्रा  का इतना  प्रचलन नही था। आज यह बढता  जा  रहा है।अब चार करोड़ के आसपास कांवड़िये हरिद्वार से  कांवड़  ला रहे हैं। इनकी बढ़ती संख्या को देखते  हुए   हो सकता है कि आने वाले कुछ सालों में यह संख्या बढ़कर दुगनी या उससे भी ज्यादा हो जाए। इसलिए हमें अभी से इसके लिए व्यवस्था  बनानी होगी। प्लानिंग करनी होगी।

अशोक मधुप

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