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कला: तमाम प्रयोगों से उपजी अतुल डोडिया की कृतियां

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महाराष्ट्र के घाटकोपर जैसी जगह, जहां आधे मराठी, आधे गुजराती लोगों का समूह हुआ करता था, मराठी में अधिकतर पुणे के ब्राह्मण हुआ करते थे, पूजा-पाठ का माहौल, रवि वर्मा के आॅलियोग्राफ, कैलेंडरों पर छपे देवी-देवता, समाचार पत्रों, बॉलीवुड के पोस्टरों को देखते हुए बड़े होने वाले कलाकार अतुल डोडिया आज समकालीन कलाकारों में सबसे अग्रणी खड़े नजर आते हैं। डोडिया का जन्म 20 जनवरी 1959 को घाटकोपर में हुआ। आप किसी एक माध्यम में बंध कर नहीं रह सके बल्कि विषय, माध्यम आदि मसलों को लेकर सदैव खोजी प्रवृत्ति के बने रहे। फलत: आज उनके काम आपको तैल, जलरंग, चारकोल, शटर पर, इंस्टालेशन, विंडो में बंद चार अलग कलाकृतियों का आपसी सामंजस्य, फिल्म के कुछ विशेष चेहरों को लेकर स्टेशनों के नाम पर साइनबोर्ड का निर्माण जैसे कई माध्यमों में नजर आ जाएंगे।

छठी क्लास में शिक्षक द्वारा ब्लैक बोर्ड पर बनाए गए फुटबॉल के साथ एक बच्चे के चित्र को कॉपी करने के दौरान अतुल डोडिया के मन में कला को लेकर कुछ-कुछ हुआ और फिर बाकी का काम मुंबई ने कर दिखाया। मुंबई जहां अमीर, गरीब, खूशबू, बदबू, भीड़, गलियां, लदी-लदी लोकल, ऑटो, टैक्सी, बेस्ट बस आदि से उठते शोर शराबे, तरह-तरह के लोग, विचारों का संगम, सीएसटी, कुर्ला जैसे स्टेशन और मुंबई की जान कही जा सकने वाली फिल्म इंडस्ट्री इन सभी के मोहजाल ने अतुल डोडिया को बहुत प्रभावित किया।

जेजे कालेज आफ आर्ट से कला में शिक्षा, अध्यापन, मुंबई के कलाकारों और विचारों में उलझे रहने के दौरान 1991-92 का समय रहा, जब इन्हें फ्रेंच गवर्नमेंट स्कॉलर के रूप में पेरिस जाने का मौका मिला, जहां इनका सामना एक नई दुनिया से हुआ। मातिस, सेजान, वॉनगॉग, पिकासो जैसों के ओरिजनल वर्क देखने को मिले, पंखों में जान भरने हेतु ये पूरी शिद्दत के साथ लगे रहे। पूरा आसमान अब अपना दिखाई देने लगा था।

फिल्म बाजीगर के पोस्टर से प्रभावित हो कलाकार अतुल डोडिया ने मुंबई बुक्कानियर नामक एक कृति का निर्माण किया जिसमें उन्होंने खुद को जेम्स बॉन्ड के रूप में रखते हुए चश्मे के सीसे में प्रसिद्ध चित्रकार भूपेन खक्खर तथा डेविड हॉकनी की छवियों को दिखाया हैं। शोले सहित कई फिल्मों के पोस्टर को नई शैली में इजा़द करने का श्रेय भी इन्हें जाता है जो इनकी मुख्य कृतियों में है।

जलरंग, चारकोल, शैडोज, पिता द्वारा भेजे गये पत्रों आदि को समन्वित रूप में भी आप प्रस्तुत करते रहे हैं। 97-98 में कीर्ति मंदिर (पोरबंदर), जहां गांधी से संबंधित वस्तुओं को सहेज कर रखा गया है, को नजदीक से देखने के बाद गांधी जी के विचारों ने डोडिया को अपनी तरफ आकर्षित किया।

अहिंसा की बातें लोगों तक पहुंचाने हेतु डोडिया को अपनी कृतियों का सहारा लेना पड़ा। फलत: कहा जा सकता है कि डोडिया अहिंसा युक्त विचारों को पेंट करने वाले कलाकार हुए और 1999 में अहिंसा का एक कलाकार शीर्षक से जलरंग के चित्रों की श्रृंखला को प्रर्दशित किये जो गांधी पर आधारित था।

पंकज तिवारी

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