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सिंधिया के सामने खड़ी चुनौतियां

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इन दिनों मध्य प्रदेश भाजपा में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ही तरह तीन गुट साफ नजर आ रहे हैं। राजनीतिक हलके में इन गुटों को शिवराज भाजपा, महाराज भाजपा और नाराज भाजपा कहा जा रहा है। इन तीनों भाजपा में महाराज भाजपा यानी ज्योतिरादित्य सिंधिया का राजनीतिक जीवन सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। सन 2018 में जब उन्होंने कांग्रेस की मध्य प्रदेश सरकार गिराकर भाजपा में शामिल होने के फैसला किया, तो उन्हें और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। उनके साथ बगावत करके आने वाले 22 विधायकों में से कुछ को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, तो कुछ निगमों और तमाम बोर्डों  में समायोजित किया गया। लेकिन दो साल भी नहीं बीते थे कि भाजपा में गए कांग्रेसी विधायकों को वहां घुटन महसूस होने लगी।

इसका कारण यह था कि कांग्रेस से भाजपा में गए विधायकों को मध्य प्रदेश भाजपा के कार्यकर्ता और विधायक अपने में आत्मसात नहीं कर पाए। भाजपा नेताओं से घुलमिल न पाने की वजह से कांग्रेस से बगावत करने वाले विधायकों में धीरे-धीरे असंतोष पनपने लगा। धीरे-धीरे एक-एक करके कुछ विधायकों ने वापसी कर ली। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा ज्वाइन करने से पहले दिए गए उनके बयान बार-बार सोशल मीडिया पर डालकर या प्रेस कांफ्रेंस में दिखाकर कांग्रेस उनके लिए असहज स्थिति पैदा करती रही। डेढ़ साल की कमलनाथ सरकार को गिराने का ईनाम उन्हें दिया गया तो नागर विमानन मंत्री का दर्जा जिसमें बहुत ज्यादा काम करने को कुछ है ही नहीं। भाजपा में सिंधिया और उनके समर्थकों को लेकर कई बार स्वर मुखर हुए।

भाजपा में कुछ नेता ऐसे हैं जो शिवराज और सिंधिया दोनों से नाराज हैं। उनको लगता है कि सिंधिया के आने के बाद उनको वह महत्व नहीं दिया जा रहा है जिसके वह हकदार हैं। शिवराज समर्थक सिंधिया के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं। कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन इसीलिए थामा क्योंकि वे शिवराज सिंह से नाराज चल रहे थे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कैलाश जोशी के पुत्र भाजपा को एक बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं। तीन-चार दिन पहले सिंधिया के कट्टर समर्थक माने जाने वाले बैजनाथ सिंह का कांग्रेस में वापसी ने भाजपा और सिंधिया के लिए विषम परिस्थिति पैदा कर दी है। जिस तरह प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी और अन्य पदों से इस्तीफा देने के बाद चार सौ गाड़ियों का काफिला लेकर बैजनाथ सिंह ने कांग्रेस में वापसी की है, उसके पीछे एक संदेश छिपा हुआ है।

यह संदेश भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों के लिए है। बैजनाथ सिंह अपने साथ अपने इलाके के ढाई हजार समर्थकों को साथ लेकर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। यह राजनीतिक हलके में एक शक्ति प्रदर्शन माना जाता है। इस शक्ति प्रदर्शन ने सिंधिया के सामने यह संकट पैदा कर दिया है कि वे अपने समर्थकों के बीच किस तरह प्रभाव बनाए रखें ताकि भाजपा में उनका प्रभाव कायम रहे।

संजय मग्गू

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