विगत दस वर्षों में अनेक बार विभिन्न मामलों में केंद्र सरकार को आईना दिखाते रहने वाली देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने गत 8 जनवरी को गुजरात के 2002 के बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार व हत्या कांड मामले पर अपना एक और ऐतिहासिक फैसला देकर सरकार को इतना असहज कर दिया है कि उसके रणनीतिकारों को मुंह छिपाने लायक भी नहीं छोड़ा। गौरतलब है कि फरवरी 2002 में हुए गोधरा ट्रेन हादसे के बाद गुजरात के बड़े इलाके में फैले मुस्लिम विरोधी दंगों के दौरान अहमदाबाद के पास स्थित एक गांव में दंगाइयों की एक भीड़ ने बिलकिस बानो व उसके परिवार पर जानलेवा हमला किया था। इसी हमले के दौरान बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप किया गया जबकि वह उस समय पांच महीने की गर्भवती भी थीं।
बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने के साथ ही उनकी तीन साल की बेटी सालेहा की उसके सामने बड़ी नृशंसता से हत्या कर दी गई थी। इस दौरान भड़की हिंसा में दंगाइयों ने बिलकिस बानो की मां, उसकी छोटी बहन और कई रिश्तेदार सहित 14 लोगों की हत्या कर दी थी। इसके बाद इस मुकदमे की सुनवाई गुजरात के बजाय महाराष्ट्र में की गयी जिसमें 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की सीबीआई की विशेष अदालत ने बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार करने व उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या करने के आरोप में 11 अभियुक्तों को सुबूतों, साक्ष्यों व गवाहियों के आधार पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
मुंबई उच्च न्यायालय ने भी बाद में सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा अपराधियों को दी गयी आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा था। ये सभी अपराधी गोधरा जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। 2002 में जिस समय बिलकिस व उसके परिवार के सदस्यों के साथ यह हृदय विदारक घटना घटी, उस समय बिलकिस की आयु लगभग 20 वर्ष थी। गुजरात सरकार ने बड़े आश्चर्य जनक ढंग से 2022 में स्वतंत्रता दिवस पर इन सभी 11 हत्यारों और बलात्कारियों की सजा में छूट देते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था।
इन सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार की मुआफी योजना के तहत रिहाई दी गई थी। रिहाई के समय सरकार ने इनके नेक चरित्र का प्रमाण पत्र दिया। अदालत के बाहर भाजपा के बड़े नेताओं द्वारा इन बलात्कारियों को ‘संस्कारी’ और ‘ब्राह्मण’ बताकर इनके अपराधों को कम करने की कोशिश की गई। इनके जेल से बाहर आने पर जेल के मुख्य द्वार से लेकर कई सार्वजनिक समारोहों में इन हत्यारों व बलात्कारियों का फूल माला तिलक के साथ स्वागत किया गया।
जिस समय देश में यह सब घटित हो रहा था, उस समय भाजपा की तरफ से ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ और ‘नारी वंदन’ जैसी लोक लुभावने ‘जुमले’ इस्तेमाल करने वाली इसी सरकार की किसी महिला मंत्री या सांसद ने अपनी जुबान नहीं खोली। खोलती भी कैसे जब इन्हें मणिपुर में महिलाओं की नग्न परेड और सामूहिक बलात्कार ने विचलित नहीं किया। यह उस पर भी खामोश रहीं तो 2002 के गुजरात के जुल्म पर इन्हें क्या बोलना था? बहरहाल, बिलकिस बानो तत्कालीन सांसद महुआ मोइत्रा, सुभाषिनी अली व कई अन्य निडर एक्टिविस्ट के सहयोग से गुजरात सरकार के 15 अगस्त 2022 को इन अपराधियों को रिहा करने के फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायलय गयीं।
आखिर में पिछले दिनों सुप्रीमकोर्ट ने इस मामले में बिलकिस बानो के साथ बलात्कार व उसके परिवार वालों की हत्या करने के उन सभी 11 दोषियों की सजा में छूट देकर रिहाई करने के गुजरात सरकार के निर्णय को अपनी सख़्त टिप्पणियों व फैसले के साथ निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जो टिप्पणियां की हैं वह सीधे तौर पर केंद्र व राज्य सरकार दोनों को कटघरे में खड़ा करती हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद जहां आम लोगों में यह धारणा बलवती हुई है कि बहुमत और बहुसंख्यवाद की राजनीति के दौर में वर्तमान सत्ता कितनी अनियंत्रित क्यों न हो जाए परन्तु देश में अदालत और कानून का राज अभी कायम है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-निर्मल रानी