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बोधिवृक्ष: चितरंजन ने की सहपाठी की मदद

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प्रसिद्ध वकील और कांग्रेस के नेता देशबंधु चितरंजन दास क्रांतिकारियों और गरीबों के मुकदमे मुफ्त में लड़ने के लिए जाने जाते थे। उनका जन्म एक ऐसे बंगाली परिवार में हुआ था जिसमें ज्यादातर लोग वकील थे। उन्होंने वकालत की पढ़ाई लंदन से की थी। वे शुरुआत से ही अपने हमपेशा मोहन दास करमचंद गांधी से प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने 1906 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। बचपन से ही वे गरीबों के प्रति दयाभाव रखते थे। जब वे 11 वर्ष के थे, तो चितरंजन को पता चला कि उनके एक सहपाठी के पास पुस्तकें नहीं हैं। वह रात भर सोचते रहे कि बिना किताब के उसका सहपाठी कैसे पढ़ेगा। सुबह उठकर उन्होंने अपने पिता से पांच रुपये मांगे। पिता ने पूछा कि वह पांच रुपये का क्या करेंगे?

चितरंजन ने कुछ बताने की जगह एक बार फिर पांच रुपये मांगे। उन दिनों पांच रुपये की बड़ी कीमत हुआ करती थी। पिता ने उन्हें पांच रुपये दिए, तो उसे लेकर वह बाहर निकल गए। पिता को उत्सुकता हुई कि वह पांच रुपये का क्या करेंगे। सो, वह भी उनके पीछे हो लिए। पिता ने देखा कि उनका बेटा अपने सहपाठी के यहां गया। उसको साथ लिया और किताब की दुकान पर जाकर उसने सारी किताबें खरीदी और दोस्त को दे दिया।

चितरंजन के पिता जानते थे कि अमुक बच्चा काफी गरीब परिवार से है। चितरंजन जब घर लौटे, तो उनके पिता ने चितरंजन की पीठ थपथपाते हुए कहा कि तुमने बहुत अच्छा काम किया। गरीबों की मदद करना, मनुष्य का सर्वोत्तम गुण है। अपने पिता की प्रशंसा पाकर चितरंजन काफी खुश हुए। उन्होंने जीवन भर गरीबों की हर संभव सहायता की।

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