केंद्र और लगभग सभी राज्य सरकारों के ‘कानून व्यवस्था नियंत्रित’ होने के तमाम दावों के बावजूद प्राय: ऐसी अनेक घटनाएं सामने आती रहती हैं जो इन सरकारी दावों की धज्जियाँ उड़ा कर रख देती हैं। ऐसी ही एक घटना गत 24 जून 2024 को राजधानी दिल्ली के व्यस्ततम इलाके प्रगति मैदान की सुरंग के भीतर उस समय घटित हुई, जबकि मोटरसाइकिल सवार चार बदमाशों ने कार रुकवाकर एक डिलीवरी एजेंट और उसके सहयोगी से पिस्टल दिखाकर लगभग दो लाख रुपये लूट लिए। जिस समय लूट की घटना अंजाम दी जा रही थी, उस समय इस सुरंग में ट्रैफिक चल रहा था। सुरंग में लगे सीसीटीवी कैमरे में लूट की दुस्साहसिक घटना रिकार्ड हुई।
इस घटना ने देश के लोगों को स्तब्ध कर दिया कि जब प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री के निवास व कार्यालय तथा सर्वोच्च न्यायालय के बिल्कुल करीब ऐसी घटना अंजाम दी जा सकती है, फिर दूरदराज इलाकों में किसी व्यक्ति की सुरक्षा की भला क्या गारंटी? गौरतलब है कि राजधानी दिल्ली की पुलिस व्यवस्था दिल्ली में निर्वाचित सरकार होने के बावजूद केंद्र सरकार के पास ही है। दिल्ली पुलिस देश की आधुनिक और चौकस पुलिस फोर्स के रूप में गिनी जाती है।
आश्चर्य की बात यह है कि जो पुलिस प्रदर्शनकारी हजारों किसानों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने का साहस रखती हो, जो पुलिस महिला खिलाड़ियों को जंतर मंतर से दिल्ली के नवनिर्मित संसद भवन पर महिला पंचायत करने से रोकने की क्षमता रखती हो, आखिर उसी पुलिस से अपराधी इतना बेखौफ कैसे हो गए कि सरेआम दिल्ली के इतने हाई फाई और संवेदनशील इलाके में कार रुकवाकर पिस्टल की नोक पर इतनी दुस्साहसिक लूट कर डाली। हालांकि दिल्ली पुलिस ने इस सम्बन्ध में पहले दो कथित आरोपियों को गिरफ़्तार करने और बाद में उनकी निशानदेही पर दो और कथित आरोपियों को गिरफ़्तार भी कर लिया है।
फिर भी लूट की इस घटना के बाद दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी, अन्य विपक्षी दलों तथा कांग्रेस पार्टी ने भी भाजपा सरकार की कार्यकुशलता पर सवाल खड़ा किया है। सोशल मीडिया पर भी यह लूट चर्चा का विषय बानी हुई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो दिल्ली के उपराज्यपाल से इस्तीफा देने की मांग तक कर डाली। केजरीवाल ने कहा कि अगर उनसे दिल्ली नहीं संभल रही, तो हमें सौंप दें। हम उन्हें बताएंगे कि दिल्ली में अपराध को कैसे रोका जा सकता है।
उत्तर प्रदेश सरकार भी अपराध पर नियंत्रण करने का जोर शोर से दावा करती है। आए दिन राज्य में होने वाली पुलिस मुठभेड़ों से यही सन्देश देने की कोशिश की जाती है कि राज्य में गुंडों व उनकी गुंडागर्दी को सहन नहीं किया जाएगा। इसी राज्य में पुलिस सुरक्षा में 15 अप्रैल रात को रात 10:35 पर अतीक अहमद व उसके भाई अशरफ की मीडिया कर्मियों के सामने इलाहाबाद के कॉल्विन अस्पताल परिसर में तीन शूटरों ने गोली मारकर हत्या कर दी।
पुलिस अपनी निगरानी में चल रहे कैदियों को सुरक्षा नहीं दे सकी। यह तीनों शूटर पत्रकार के वेश में कॉल्विन हॉस्पिटल परिसर में अतीक अशरफ के करीब पहुंचे थे। इस घटना ने भी पुलिस की कारगुजारी पर सवाल खड़ा किया है। अतीक व अशरफ के परिवार ने तो उसी समय सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि इन दोनों भाइयों की हत्या में सरकार का हाथ है और यह राज्य प्रायोजित हत्या थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि दोनों भाइयों के साथ-साथ अतीक के बेटे असद अहमद के एनकाउंटर की भी स्वतंत्र जांच कराई जाए।
याचिका में यह भी कहा गया था कि उच्चस्तरीय सरकारी एजेंटों के माध्यम से इस पूरी घटना की योजना बनाई गई। उन्होंने उसके परिवार के सदस्यों को मारने के लिए योजना बनाई और उसे पूरा किया। याचिका में यह भी कहा गया था कि पुलिस अधिकारियों को उत्तर प्रदेश सरकार का पूरा समर्थन प्राप्त है। उन्होंने आरोप लगाया था कि प्रतिशोध के तहत उसके परिवार के सदस्यों को मारने, अपमानित करने, गिरफ्तार करने और परेशान करने के लिए उन्हें पूरी छूट दी हुई है। ऐसा प्रतीत होता है। यदि पुलिस अपनी लापरवाही से अतीक और अशरफ को हत्यारों की गोली का निशाना बनने से रोक लेती, तो शायद ऐसा संगीन आरोप राज्य सरकार और उसकी पुलिस पर न लगते।
उत्तर प्रदेश में इससे भी चुनौतीपूर्ण व सनसनीखेज घटना 7 जून लखनऊ की स्थानीय अदालत के भीतर हुई। संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा गैंगस्टर की भरी अदालत में गोली मारकर हत्याकर दी गई। जीवा को एक मामले में सुनवाई के लिए अदालत लाया गया था। जहां हमलावरों ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। हमलावर वकीलों की पोशाक पहनकर पिस्टल के साथ जीवा के अदालत में पहुँचने से पहले ही उसी कोर्ट रूम में जा बैठे थे। पुलिस को इस साजिश की भनक तक नहीं मिली? कहा जाता है कि जिस समय हत्यारे ने जीवा पर गोली चलानी शुरू की, उस समय अदालत में भगदड़ मचते ही खुद जज साहब भी किसी अनहोनी से बचने के लिए अपनी टेबल के नीचे जा घुसे।
बाद में कुछ वकीलों ने ही साहस दिखाते हुए हत्यारे पर काबू पाया। सवाल यह है कि बुलडोजर की धमक दिखाकर समुदाय विशेष को निशाना बनाकर या फर्जी मुठभेड़ों में लोगों को मारने जैसी कार्रवाइयां ही पुलिस की कुशलता व चौकसी का प्रमाण हैं या कि आम लोगों को भी इस बात का एहसास होना चाहिए कि देश में कानून का राज है? अपराधियों का पुलिस कस्टडी में अदालत में मारा जाना या दिल्ली के व्यस्त इलाके में नंगा नाच दिखाना और लूट व हत्या जैसी वारदात को बेखौफ अंजाम देना तो यही दर्शाता है कि सरकार भले ही कानून व्यवस्था सुदृढ़ होने के कितने ही दावे क्यों करे परन्तु अपराधी बेखौफ हैं।
निर्मल रानी