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अपमान के चलते इंजीनियर बने गंगाराम

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अविभाजित पंजाब के ननकाना साहिब जिले के मंगतांवाला गांव में सर गंगाराम अग्रवाल क जन्म हुआ था। उन्हें अंग्रेजी शासन के दौरान राय बहादुर सर की उपाधि मिली थी। गंगाराम के पिता मंगतांवाला पुलिस स्टेशन में जूनियर सब इंस्पेक्टर थे। गंगाराम ने मंगतांवाला से मैट्रिक की परीक्षा पास की तो उन्होंने सोचा कि उन्हें अब नौकरी करनी चाहिए। यह सोचकर वह अपने चाचा के पास शहर आए।

उनका चाचा शहर में एक इंजीनियर के कार्यालय में काम करता था। जिस समय वह कार्यालय में पहुंचे, उनका चाचा इंजीनियर के साथ कहीं गया हुआ था। उस कार्यालय के चपरासी ने उनसे बैठकर इंतजार करने को कहा। वह एक अच्छी कुरसी देखकर बैठ गए। कुछ देर बाद जब चपरासी अंदर आया, तो उसने गंगाराम को डांटते हुए कहा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, इस कुरसी पर बैठने की। यह इंजीनियर की कुरसी है।

गंगाराम को यह अपमान अखर गया। उन्होंने चपरासी से कहा कि जिस कुरसी पर से तुमने मुझे उठाया है, मैं एक दिन इंजीनियर बनकर दिखाऊंगा। यह कहकर गंगाराम कार्यालय से बाहर आ गए। थोड़ी देर में उसके चाचा आए तो उसने अपने चाचा से कहा कि चाचा मैं आया तो नौकरी करने था, लेकिन आज के बाद में पढ़ाई करूंगा।

यह सुनकर उसके चाचा बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने गंगाराम की पीठ थपथपाते हुए कहा कि तुम अपनी पढ़ाई शुरू रखो, मैं तुम्हारी सहायता करूंगा। 1871 में उन्होंने रुड़की के थॉमसन सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज (अब आईआईटी रुड़की) से छात्रवृत्ति प्राप्त की। उन्होंने 1873 में स्वर्ण पदक के साथ अंतिम निचली अधीनस्थ परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्हें सहायक अभियंता नियुक्त किया गया और शाही असेंबली के निर्माण में मदद के लिए दिल्ली बुलाया गया।

-अशोक मिश्र

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