एक राजा था। वह गुण पारखी माना जाता था। वह अपने राज्य की प्रजा का खूब ध्यान भी रखता था। यदि उसे पता चलता कि उसकी प्रजा कष्ट में है, तो वह उसे दूर करने का भरसक प्रयास करता था। उसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। दरबारी भी अपना काम ठीक से करते थे। एक बार की बात है। दरबार में सभी बैठे काम कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति खूब अच्छे-अच्छे कपड़े और आभूषण पहनकर दरबार में आया। उसने अपने सिर पर एक गट्ठर रख रखा था। राजा ने उस पर ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर बाद उस आदमी ने राजा को अपने बनाए हुए चित्र दिखाए। राजा थोड़ा प्रभावित हुआ। कुछ देर बाद जब राजा ने उसके सारे चित्र देख लिए, तो उसकी प्रशंसा की। उसे खूब ईनाम दिया। उसकी आवभगत भी की।
जब वह आदमी चलने लगा, तो उसे दोबारा राज दरबार में आने का न्यौता दिया। तब उस व्यक्ति ने पूछा, महाराज! जब मैं आया था, तब आपने मुझे कोई महत्व नहीं दिया। चित्र दिखाने के बाद आपने न केवल सम्मान दिया, आवभगत की और दोबारा दरबार में आने को भी कहा। राजा ने कहा कि मैं किसी के कपड़े या आभूषण से प्रभावित नहीं होता हूं। मैं गुणों को परखने के बाद ही व्यक्ति को सम्मान देता हूं।
जब आप आए थे, तो मैं आपके गुणों के बारे में नहीं जानता था। लेकिन आपके चित्र देखने के बाद मुझे पता चला कि आप अच्छे चित्रकार हैं। तो मैंने आपकी कला को सम्मान दिया। उसे ईनाम भी दिया। मैं आपकी सुंदरता या आभूषण से कतई प्रभावित नहीं हूं। यह सुनकर चित्रकार राजा से काफी प्रभावित हुआ। उसने राजा की बात अपने मन में गांठ बांध ली और उसने भी जीवन में ऐसा ही करने का संकल्प लिया।
अशोक मिश्र