इस दुनिया में जितने भी लोग हैं, वे अपनी पुरानी पीढ़ी यानी बाबा, पिता, चाचा आदि की संपत्ति, उनके द्वारा जीवन में कमाए गए मान-सम्मान और यहां तक अपमान के भी उत्तराधिकारी होते हैं। अब हमें अपने पुरखों द्वारा और खुद अपने द्वारा की गई गलतियों का खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। पूरी दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग प्राचीनकाल की पुस्तकों में वर्णित किसी राक्षस या असुर की तरह हमें और हमारी भावी पीढ़ी को निगलने के लिए आतुर है। इस मामले में बस इतना ही कहा जा सकता है कि कुछ गलतियां हमारे पूर्वजों ने की, कुछ हमारे बाप-दादाओं ने की, कुछ हम लोगों ने भी की, लेकिन अब ऐसा लगता है कि उसका खामियाजा भुगतने का समय आ गया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के डिजास्टर मैनेजमेंट डिवीजन और हिमालय पर्यावरण एक्सपर्ट टीम का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालयी क्षेत्र में 188 ग्लेशियर ऐसे हैं जो कभी भी तबाही मचा सकते हैं। इससे लगभग तीन करोड़ की आबादी बुरी तरह प्रभावित होगी। आखिर ग्लोबल वार्मिंग यानी धरती के गर्म होने की शुरुआत कब हुई? असल में जब से औद्योगिक क्रांति हुई है, तब से जीवाश्म ईंधन के बेतहाशा उपयोग ने हमारे वायुमंडल में कार्बन डाई आक्साइड जैसी तमाम हानिकारक गैसों को भारी मात्रा में पैदा किया। करीब तीन-साढ़े तीन सौ साल में इतनी गैसें पैदा हुईं कि उसने पृथ्वी के तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी कर दी। यह कोई एक दिन में नहीं हुआ।
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सदियों लगे। कई पीढ़ियों की करतूत और विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और जीवाश्म ईंधन ने हमारे पर्यावरण को बहुत बुरी तरह प्रभावित किया। नतीजा आज सबके सामने है। कश्मीर, लददख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे हिमालयी राज्य संकट में हैं। इन क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर झीलें यदि किसी भी कारणवश फटीं तो भयंकर तबाही निश्चित है। इन 188 ग्लेशियर झीलों को कोई भी छह-सात रेक्टर पैमाने पर हिमालय में आने वाले भूकंप किसी बहुत बड़े बम की फोड़ सकता है।
पिछले साल सिक्किम में ग्लेशियर झील फटने से जो तबाही मची थी, उसके बारे में सिक्किम के भुक्तभोगी बहुत अच्छी तरह से बता सकते हैं। झील फटने के बाद ऊपर से आने वाले मलबे और भारी मात्रा में मिट्टी की चपेट में जो भी आया, वह बचा नहीं। कई गांव के गांव तबाह हो गए, मिट्टी और कंकड़ पत्थर का बहाव उन्हें बहा ले गया। किसी को संभलने का मौका तक नहीं मिला। अगर तबाही को रोकना है, तो सबसे पहले इन 188 ग्लेशियर झीलों में किसी तरह छेद करके वहां जमा पानी को धीरे-धीरे निकालना होगा। इन झीलों में ड्रिलिंग भी कोई आसान काम नहीं है। जरा सी चूक हुई तो तबाही निश्चित है। यही नहीं, हमें भावी पीढ़ी को सुरक्षित भविष्य देने के लिए कार्बन उत्सर्जन पर काफी हद तक रोक लगानी होगी। जब तक कार्बन उत्सर्जन नहीं रुकेगा, कोई भी तरकीब तात्कालिक ही होगी।
-संजय मग्गू
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