हमारे देश की सबसे बड़ी बुराई जातिवाद है। जातियों की अपनी उपयोगिता हो सकती है, लेकिन जातियों को नाम पर जो छुआछूत, ऊंच-नीच जैसी भावनाएं हमारे समाज में फैली हुई है, वह हमारी एकता को कमजोर करती है। इससे हमारे देश की छवि दुनिया की नजर में खराब बनती है। जातिवाद की दीवार को तोड़ने का प्रयास हमारे प्राचीन संत-महात्मा तक कर चुके हैं। स्वामी महावीर और महात्मा बुद्ध जैसे महापुरुषों ने जातिवाद को खत्म करने का काफी प्रयास किया था।
दोनों राज घराने के थे, लेकिन उनकी नजर में सब बराबर थे। महावीर के संन्यास लेने के मौके का प्रसंग है कि जब राजकुमार वर्धमान ने संन्यास लेने की घोषणा की, तो लोग आश्चर्यचकित रह गए। वे समझ नहीं पा रहे थे कि राजकुल में जन्म लेने वाला राजकुमार संन्यासी का जीवन कैसे जिएगा।
जब वह उस स्थान पर जा रहे थे जहां उन्हें संन्यास लेना था, तो एक आदमी भीड़ को हटाता हुआ आगे आने की कोशिश करने लगा। वह बार-बार कह रहा था कि मुझे राजकुमार वर्धमान से मिलने दो।
मुझे राजकुमार वर्धमान से मिलने दो। लोग उसे बार-बार रोक रहे थे क्योंकि वह हरिकेशी नाम का अछूत था। राजकुमार ने हरिकेशी को देखा और बोले-उसे आने दो। हरिकेशी दौड़कर उनके पास पहुंचा और वह राजकुमार वर्धमान के चरणों में झुकने लगा। वर्धमान ने उसे कंधे से पकड़कर उठाया और उसे गले से लगा लिया। वहां मौजूद लोग आश्चर्य चकित हो उठे कि राजकुमार वर्धमान ने उस व्यक्ति को गले लगाया जिसको कोई छूना तक नहीं चाहता है। यह थी स्वामी महावीर की जातिवाद की दीवार तोड़ने की पहली कोशिश।
अशोक मिश्र