जैन और बौद्ध धर्म में बहुत सी बातें एक दूसरे से मिलती जुलती हैं। महात्मा बुद्ध और स्वामी महावीर दोनों एक दूसरे के समकालीन भी बताए जाते हैं। दोनों धर्मों में अहिंसा को बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है। दोनों धर्म इस बात पर जोर देते हैं कि चोरी करना और किसी असहाय या गरीब को सताना सबसे बड़ा पाप है। महात्मा बुद्ध और स्वामी महावीर ने हमेशा लोगों को सादा जीवन जीने के लिए प्रेरित किया।
एक बार की बात है। पुष्कलावती नामक देश में एक दस्य दंपति रहता था। पुरुष क नाम पुरुरवा और महिला का नाम कालिका था। पुरुरवा भीलों की बस्ती सरदार था। उसकी बस्ती के लोग लूटपाट, चोरी जैसे काम करके अपना पेट पालते थे। एक दिन उसने देखा कि एक ऋषि उनकी ओर चला आ रहा है। वह ऋषि और कोई नहीं जैन मुनि सागर सेन थे। जैन मुनि के चेहरे पर आत्मविश्वास का तेज था। कालिका ने जैन मुनि पर अपने पति को धनुष ताने देखा, तो उसे रोककर कहा कि अगर हम इस मुनि को मारने के बजाय प्रसन्न कर लें, तो वह इतना धन दे सकते हैं जिससे हमारा गुजारा बहुत आसानी से हो सकता है। पुरुरवा को भी यह बात जंच गई।
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उसने अपने हथियार नीचे कर दिए। जब वह जैन मुनि सागरसेन के निकट पहुंचा तो उसका हृदय निर्मल हो गया। दोनों पति-पत्नी हिंसा की बात भूल गए थे। जैन मुनि सागर सेन उन दोनों को देखते हुए यह जान गए कि यही अगले जन्म में 24वें तीर्थंकर के रूप में जन्म लेने वाले हैं। उन्होंने दोनों को यह पाप कर्म छोड़कर सत्कर्म करने को कहा। जैन मुनि की बात सुनकर भील दंपति को अपनी गलतियों का एहसास हुआ। उन्होंने उसी समय से पाप कर्म त्यागकर भीलों की बस्ती का उद्धार करना शुरू कर दिया।
-अशोक मिश्र
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